: ३८ : आत्मधर्म : भादरवो : २५०१
आत्मधर्म अंक ३८१, पानुं–४४मां छेल्ला
बे प्रश्नो छे ते संबंधी सुधारो: –
प्रश्न:– पर्याय वगरना एकांतधु्रवनुं ध्यान थई शके?
उत्तर:– (१) ध्यान पर्याय छे अने ते ध्यान त्रिकाळ आत्मा–धु्रव आत्मा जे कारण–
परमात्मा कहेवाय छे ते ध्याननो विषय होय तो निर्विकल्पता प्रगटे छे माटे
वर्तमान पर्याय त्रिकाळ धु्रवनुं ध्यान करे तेथी तेनो विषय जे धु्रव छे ते
एकांतधु्रव थई जतो नथी.
(र) उत्पाद अने व्यय पर्यायरूपे सत् छे तेथी एक समयना ते होय छे, अने
धु्रव त्रिकाळ एकरूप रहे छे. माटे पर्याय धु्रवनुं ध्यान धरे तेमां ते ध्रुव एकांत
थई जतुं नथी, परंतु तेवुं ध्यान करतां निर्विकल्पता उत्पन्न थाय छे त्यां ध्यान–
ध्याता–ध्येयनो भेद जे रागरूप छे ते रहेतो नथी, तेने साचुं ध्यान कहेवामां
आवे छे. निर्विकल्प ध्यान सीवायनुं जे ध्यान होय छे ते रागवाळुं होवाथी ते
खरुं ध्यान नथी, पण आर्त अथवा रौद्र ध्यान होय छे.
प्रश्न:– द्रव्य–गुण–पर्याय वच्चे कोई प्रकारे प्रदेशभेद छे?
उत्तर:– तेमना प्रदेशो एक ज छे पण तेमां प्रदेशना अंशोरूपी भेद पाडी शकाय छे.
पर्यायना प्रदेश–अंश एक समयनो उत्पाद ने व्ययरूपनो छे, ने द्रव्यना प्रदेश
धु्रवरूप छे तेवो भेद थई शके छे. जो एवो भेद करवामां न आवे तो द्रव्यने
पर्याय अथवा गुणने पर्याय वच्चेनुं जे स्वरूप भेदपणुं छे तेनो नाश थई
जाय छे.
द्रव्य–गुण ने पर्याय वच्चे प्रदेशभेद होतो नथी एम जे शास्त्रमां कहेवामां आवे
छे तेनो अर्थ एवो छे के–ते बीजा द्रव्योना प्रदेशोथी तेना प्रदेशो जुदा पाडवा
होय त्यारे तेओना प्रदेशो एकरूप ज छे एम कहेवामां आवे छे.
[उपर मुजबनी स्पष्टता पू. गुरुदेवनी आज्ञाअनुसार मु. श्री रामजीभाईए
लखी आपेल छे, ने पू. गुरुदेवश्री पासे वंचावीने छापवामां आवी छे. –सं.]