Atmadharma magazine - Ank 384
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 104 of 106

background image
: ९६ : आत्मधर्म : आसो : २५०१
आपीने मने आत्मरस पीवडाव्यो. कल्पनातीत आवो सुयोग, अने तेनी साथे
‘आत्मधर्म’ ना कार्य द्वारा ज्ञानरसनुं निरंतर घोलन, ए बधुं जेमना प्रतापे प्राप्त थयुं
– ते परम उपकारी गुरुदेवना चरणमां हृदयनी ऊर्मिथी लाख–लाख वंदन करुं छुं.
बंधुओ, ३२ वर्ष दरमियान पू. गुरुदेवना मंगल चरणमां रहीने, आत्मधर्म
द्वारा वीतरागी देव – गुरु –धर्म जिनवाणीनी जेटली सेवा माराथी थई शकी तेटली
में साचा भावथी करी छे... आम छतां तेमां माराथी जे कांई क्षति – दोष थया होय
ते माटे हुं दीनभावपूर्वक विनयथी हाथ जोडीने क्षमा मांगु छुं. हे जिनवाणी माता!
उदारदिले तमारा आ बाळकने क्षमा करजो, माता! मारुं जीवन सदाय तमारी सेवा
माटे ज छे. आजे विदायनी वेळाए अने सन्तोष छे के जिनवाणी मातानी साचा
भावथी में जे सेवा करी छे तेनुं सम्यक्फळ जिनवाणी –माताए मने आप्युं छे.
भगवान महावीरना २५०० वर्षीय निर्वाणमहोत्सवना आ वर्षमां महावीर
प्रभुना शासनना अपार महिमाने आपणे आत्मधर्मद्वारा खूबखूब प्रसिद्ध कर्यो छे.
हवे ए निर्वाणमहोत्सवुं वर्ष पूरुं थई रह्यं छे त्यारे आत्मधर्मनुं ३२ मुं वर्ष पण
पूरुं थाय छे, ने साथे साथे मारुं संपादकत्व पण हवे पूरुं थाय छे..... आत्मधर्मना
संपादनकार्यथी हुं हवे विदाय लउं छुं.
विदायनी आ वेळाए मने याद आवे छे – महावीर भगवान अने सीमंधर
भगवान..! मने याद आवे छे पंचपरमेष्ठी देव ने कुंदकुंदप्रभु...! मने याद आवे छे
गुरुदेवना अनंत अनंत उपकारो... ने मारा हृदयमां ऊभराय छे पू. माताजीनी
वात्सल्यभरी ऊर्मिओ! अने, मारा सौ साधर्मी भाई – बेनोना वात्सल्यपेमने
पण हुं केम भूलुं! बस बंधुओ! आवो जैनमार्ग पामीने आत्मानी साधनामां खूब
– खूब आगळ वधजो.... ने सौ आनंदमां रहेजो... मंगल विदाय! “जय महावीर.”
विदाय देजो प्रेमथी, भूलीने वेरभाव!
जिनशासननी छायडी, वसजो उर सदाय!
जिनवाणीनी सेवा जीवननो ए सार!
साधर्मीने स्नेहथी दुःखमां देजो प्यार!
देव–गुरु ने धर्मनुं शरणुं रहो सदाय;
मंगलकारी आत्मा, (बस!) ए ज सत्य सुखदाय.
–आपना भाई हरि०