‘आत्मधर्म’ ना कार्य द्वारा ज्ञानरसनुं निरंतर घोलन, ए बधुं जेमना प्रतापे प्राप्त थयुं
– ते परम उपकारी गुरुदेवना चरणमां हृदयनी ऊर्मिथी लाख–लाख वंदन करुं छुं.
में साचा भावथी करी छे... आम छतां तेमां माराथी जे कांई क्षति – दोष थया होय
ते माटे हुं दीनभावपूर्वक विनयथी हाथ जोडीने क्षमा मांगु छुं. हे जिनवाणी माता!
उदारदिले तमारा आ बाळकने क्षमा करजो, माता! मारुं जीवन सदाय तमारी सेवा
माटे ज छे. आजे विदायनी वेळाए अने सन्तोष छे के जिनवाणी मातानी साचा
भावथी में जे सेवा करी छे तेनुं सम्यक्फळ जिनवाणी –माताए मने आप्युं छे.
पूरुं थाय छे, ने साथे साथे मारुं संपादकत्व पण हवे पूरुं थाय छे..... आत्मधर्मना
संपादनकार्यथी हुं हवे विदाय लउं छुं.
गुरुदेवना अनंत अनंत उपकारो... ने मारा हृदयमां ऊभराय छे पू. माताजीनी
वात्सल्यभरी ऊर्मिओ! अने, मारा सौ साधर्मी भाई – बेनोना वात्सल्यपेमने
पण हुं केम भूलुं! बस बंधुओ! आवो जैनमार्ग पामीने आत्मानी साधनामां खूब
– खूब आगळ वधजो.... ने सौ आनंदमां रहेजो... मंगल विदाय! “जय महावीर.”
जिनशासननी छायडी, वसजो उर सदाय!
जिनवाणीनी सेवा जीवननो ए सार!
साधर्मीने स्नेहथी दुःखमां देजो प्यार!
देव–गुरु ने धर्मनुं शरणुं रहो सदाय;
मंगलकारी आत्मा, (बस!) ए ज सत्य सुखदाय.