Atmadharma magazine - Ank 384
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २५०१ आत्मधर्म : ९५ :
विदायनी वेळाए
भगवान महावीरप्रभुना अढीहजारवर्षीय निर्वाणमहोत्सवनुं आ
मंगलवर्ष हवे पूरुं थाय छे; साथे साथे आपणा आ आत्मधर्मनुं ३२ मुं वर्ष पण
आ अंकनी साथे पूरुं थाय छे. बंधुओ! ३२ वर्षे हवे हुं आत्मधर्मना लेखन –
संपादनकार्यथी निवृत्ति लउं छुं’ ३२ वर्ष सुधी आत्मधर्म द्वारा आपणे नियमित
मळता रह्या; देव – गुरु – धर्मने हृदयमां राखीने, साधर्मी जनो पत्ये हार्दिक
वात्सल्यभावथी में ‘आत्मधर्म’ लख्युं छे नेआप सौए पण तेवा ज भावथी
आत्मधर्म वांच्युं छे. पाठक बंधुओ! आप मात्र पाठक नहि परंतु मारा साधर्मी
पण छो, – मारा साधर्मीजनो प्रत्ये मने हार्दिक वात्सल्य छे, ने समस्त पाठकजनोने
पण मारा प्रत्ये जे हार्दिक वात्सल्य वहेवडाव्युं छे – ते जीवनमां कदी नहि भुलाय.
“आत्मधर्म हंमेशांं आत्माने महिमा प्रसिद्ध कर्यो छे; तेना द्वारा ३२ वर्ष
दरमियान देव–गुरु–धर्मनी ने जिनवाणीनी जे प्रभावना थई छे ते सौ साधर्मीओ
जाणे ज छे. आटला दीर्धकाळना परिचय बाद निवृत्त थतां, विदायनी वेळाए
आपणुं हृदय लागणीसभर बने ते सहज छे. परंतु आपणा पूज्य गुरुदेवे
आपणने शीखव्युं छे तेम सयोग – वियोगमां समपणे रहीए, ने संयोग –
वियोगथी अलिप्त एी आपणी चेतनाने ज आनंदथी भावीए! श्रीगुरुए
आपणने आपेली ए महान – अमूल्य – साची प्रसादी छे.
आ प्रसंगे ३२ वर्षना दीर्धकाळना प्रसंगो स्मृतिपटमां एकसाथे तरवरे छे.
१९ वर्षना एक अबुध–छोकराने प्रेमथी शरणमां लईने गुरुदेवे पोतानो ज गणीने
ज्ञान–वैराग्यनुं सींचन कर्युं... जैनधर्म... अने तेमां पण कुंदकुंदप्रभुनी आम्नायनो
जैनधर्म, केवो अद्भुत सुंदर छे! – ते गुरुदेवे असंख्यप्रदेशमां ठांसीठांसीने समजाव्युं.
मारा धन्य भाग्ये मने आवा गुरु अने आवो सुंदर मार्ग मळ्‌यो.... साथे साथे पू.
धर्ममाताओना प्रसादे गुरुदेवना उत्तम भूत – भाविनी आश्चर्यकारी विशिष्टता
जाणवा मळी ने तेओश्रीए आत्महितनी ऊंडी ऊंडी अनेरी प्रेरणाओ