समकिती नाना पुत्र छीए, – नाना पण सर्वज्ञना पुत्र छीए, एटले रागथी जुदा
पड्या छीए; ज्ञान अने रागनी भिन्नताना भेदज्ञान वडे राग साथेनुं रागपण
तोडीने सर्वज्ञपद साथे सगपण बांध्युं छे – तेथी अमारुं चित्त परम शांत थयुं छे, ने
गणधरादिनी जेम अमे पण प्रभुना मोक्षमार्गमां आनंदथी चाली रह्या छीए.
पिताना बे पुत्रोनी जेम केवळज्ञान अने मतिज्ञान बंने ज्ञाननी ज जात छे, एक
ज्ञाननुं ज परिणमन छे. जेम केवळज्ञान रागनुं कर्तृत्व नथी, तेम सम्यग्द्रष्टिना मति –
श्रुतज्ञानमां पण ज्ञानथी भिन्न रागादिनुं कर्तृत्व नथी; ज्ञानस्वभावमां ज तन्मय
परिणमतुं तेनुं ज्ञान पण केवळज्ञाननी जेम ज रागनुं ने परनुं ज्ञाता छे, तोथी जुदुं
रहीने तेने जाणे छे. आवुं मति – श्रुतज्ञान अतीन्द्रिय सुखने साथे लेतुं प्रगटे छे; ने
पछी ते वधतां – वधतां केवळज्ञानमां पर्ण सुख प्रगटे छे, ते सौथी महान सर्वोत्कृष्ट
सुख छे. अहो, ए ज्ञान ने ए सुखना महिमानी शी वात? केवळज्ञानमां एवुं
अचिंत्य सामर्थ्य छे के अनंत एवा आकाशने पण ते अनं तरीके जाणी ल्ये छे; एक
चैतन्यरसमां ज लीन रहे छे. ज्ञानना आवा स्वादनो निर्णय सम्यग्द्रष्टिने ज थाय छे.
दरेक जीवमां आवो ज्ञानस्वभाव छे तेनी प्रतीत करीने, हे जीवो! तेनुं सेवन करो.
सम्यग्ज्ञान, ते सर्वे मोहरूपी हाथीने भगाडी मुके ने मोक्षने साधे – एवी
ताकातवाळुं छे.