Atmadharma magazine - Ank 384
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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धर्मचक्र धारक प्रभो! कर्यो धरम–उद्योत;
वंदुं छुं तुम चरणमां, प्रगटे आतमज्योत.
आत्म धर्म
अहा, चैतन्यमां लीन रहीने केवा मजाना
अतीन्द्रिय आनंदने ज आप ध्यावी रह्या
छो! ए महा आनंदनुं स्मरण
पण आनंद–मंगलकारी छे.
तंत्री : पुरुषोत्तमदास शिवलाल कामदार * संपादक : ब्र. हरिलाल जैन
(३८४)