Atmadharma magazine - Ank 384
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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रु रु
महावीर – वंदना
पणमामि वड्ढमाणं तिथ्थं धम्मस्स कत्तारं
उपरोक्त सूत्रद्वारा कुन्दकुन्दस्वामीए जे परमात्माने
प्रणाम कर्यो छे, जेओ प्रवर्तमान धर्म–तीर्थना नायक छे अने
जेमना निर्वाणगमनना अढीहजारवर्षनो मंगलउत्सव एक
वर्षथी आपणे ऊजवी रह्या छीए, ते सर्वज्ञ परमदेव वर्द्धमान
महावीरप्रभु प्रत्ये सम्यक्भक्तिनी अंजलिरूपे आ विशेषांक
प्रगट करतां मारुं हृदय हर्ष–आनंद अने तृप्ति अनुभवे छे.
भरतक्षेत्रमां धर्मचक्रनुं प्रवर्तन करनारा वीरप्रभु तो
अढीहजार वर्ष थया मोक्षपुरीमां पधारी गया...ध्रुव–अचल ने
अनुपम एवी सिद्धगतिने तेओ पाम्या....आजे अढीहजार वर्ष
बाद पण आपणे माटे ए परम हर्षनुं कारण छे के–श्री
वीरप्रभुए बतावेलो मोक्षनो मार्ग आजे पण चाली रह्यो छे,
ने ए मार्गमां आपणने अपुनर्भवना हेतुनी प्राप्ति थाय छे.
अहा, केवो आनंदमय मार्ग!
–आवा सुंदर मार्गना प्रणेता प्रभु महावीरदेवने
सम्यक्स्वरूपे ओळखीने, ‘आनंदपूर्वक ते प्रभुना मंगलमार्गे
जईए–एवी भावनासहित, परम उपकारी शासननायक प्रभु
प्रत्ये मोक्षकल्याणकनी अंजलि अर्पीए छीए. –हरि.....