Atmadharma magazine - Ank 384
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २५०१ आत्मधर्म : ३१ :
* विचित्र संसार वच्चे अलिप्त ज्ञानचेतना *
श्री गौतमगणधरना मुखथी पोताना भूतकाळना भवोनुं वर्णन
सांभळ्‌या पछी, श्रेणीकराजा वैराग्यपूर्वक पोताना भविष्यना भवो पण पूछे छे:
त्यारे गौतमस्वामी कहे छे के हे श्रेणीक! पहेलांं अज्ञानदशामां मिथ्यात्वादि
पापो सेववाथी ने जैनमुनि उपर उपद्रव करवाथी पाप बांधीने तुं पहेली नरके
जईश. पण पछी क्षायिक सम्यक्त्वपूर्वक १६ धर्म भावना भावी होवाथी, बीजा
भवमां तमे आ भरतक्षेत्रमां पद्मनाथ नामना त्रिलोकपूज्य तीर्थंकर थईने
मोक्ष पामशो.
आहा, एक ज जीव, एक ज भवमां एकवार सातमी नरकना कर्म बांधे
छे, ने वळी ते ज जीव ते ज भवमां तीर्थंकरप्रकृतिनु कर्म बांधे छे. जुओ तो
खरा, जीवनी परिणतिनी विचित्रता! क्षायिकद्रष्टि श्रेणीके पोताने माटे एकसाथे
बे वात सांभळी–
* एक तो आगामी भवे नरकमां जवानुं थशे
* बीजुं त्यार पछीना भवे पहेलां तीर्थंकर थशे.
नरकमां जवानुं अने तीर्थंकर थवानुं बंने वात एकसाथे सांभळीने
एने केवी लागणीओ थई हशे? शुं हर्ष थयो हशे? शुं खेद थयो हशे!! क्यां
हजारो वर्ष नरकना घोरातीघोर दुःखोनी वेदना! ने क्यां त्रिलोकपूज्य तीर्थंकर
पदवी! बंने एकसाथे सांभळीने–एककोर नरकगतिनो खेद, बीजीकोर...
तीर्थंकरपदनो हर्ष,–पण श्रेणीकमां एवा हर्ष–खेदने ज हे भव्य जीवो! तमे न
देखशो,–ए बंने सिवाय एक त्रीजी अत्यंत सुंदर वस्तु ते ज वखते श्रेणीकमां
वर्ते छे–तेने तमे देखजो;–तो ज तमे धर्मात्मा श्रेणीकने ओळखशो, नहितर हर्ष–
शोक जेटलो ज देखीने तमे श्रेणीकने अन्याय करशो.
कई छे ए त्रीजा वस्तु! ए छे ज्ञानचेतना! ए छे क्षायिकसम्यक्त्व! ए
क्षायिकद्रष्टि सहितनी ज्ञानचेतना ते वखते ज हर्ष–शोक बंनेथी सर्वथा अलिप्त,
परम शांत वर्ती रही छे; ए ज्ञानचेतना, नथी तो नरकना कर्मोने वेदती, के नथी
तीर्थंकर प्रकृतिना कर्मने वेदती; बंने कर्मोथी जुदी, नैष्कर्मभावे कर्मथी छूटी ने
छूटी वर्तती थकी शांतिथी मोक्षपंथने साधी रही छे. ए छे श्रेणीकनुं साचुं
स्वरूप! एने ओळखशो तो, श्रेणीकनी नरकदशा के तीर्थंकरदशा.–बंने सांभळवा
छतां तमे पण राग–द्वेष वगरनी शांत–ज्ञानचेतनारूपे रही शकशो! ने
मोक्षपंथमां चाली शकशो. *