त्यारे गौतमस्वामी कहे छे के हे श्रेणीक! पहेलांं अज्ञानदशामां मिथ्यात्वादि
पापो सेववाथी ने जैनमुनि उपर उपद्रव करवाथी पाप बांधीने तुं पहेली नरके
जईश. पण पछी क्षायिक सम्यक्त्वपूर्वक १६ धर्म भावना भावी होवाथी, बीजा
भवमां तमे आ भरतक्षेत्रमां पद्मनाथ नामना त्रिलोकपूज्य तीर्थंकर थईने
मोक्ष पामशो.
खरा, जीवनी परिणतिनी विचित्रता! क्षायिकद्रष्टि श्रेणीके पोताने माटे एकसाथे
बे वात सांभळी–
* बीजुं त्यार पछीना भवे पहेलां तीर्थंकर थशे.
नरकमां जवानुं अने तीर्थंकर थवानुं बंने वात एकसाथे सांभळीने
हजारो वर्ष नरकना घोरातीघोर दुःखोनी वेदना! ने क्यां त्रिलोकपूज्य तीर्थंकर
पदवी! बंने एकसाथे सांभळीने–एककोर नरकगतिनो खेद, बीजीकोर...
तीर्थंकरपदनो हर्ष,–पण श्रेणीकमां एवा हर्ष–खेदने ज हे भव्य जीवो! तमे न
देखशो,–ए बंने सिवाय एक त्रीजी अत्यंत सुंदर वस्तु ते ज वखते श्रेणीकमां
शोक जेटलो ज देखीने तमे श्रेणीकने अन्याय करशो.
परम शांत वर्ती रही छे; ए ज्ञानचेतना, नथी तो नरकना कर्मोने वेदती, के नथी
तीर्थंकर प्रकृतिना कर्मने वेदती; बंने कर्मोथी जुदी, नैष्कर्मभावे कर्मथी छूटी ने
छूटी वर्तती थकी शांतिथी मोक्षपंथने साधी रही छे. ए छे श्रेणीकनुं साचुं
स्वरूप! एने ओळखशो तो, श्रेणीकनी नरकदशा के तीर्थंकरदशा.–बंने सांभळवा
छतां तमे पण राग–द्वेष वगरनी शांत–ज्ञानचेतनारूपे रही शकशो! ने
मोक्षपंथमां चाली शकशो. *