Atmadharma magazine - Ank 384
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: ३० : आत्मधर्म : आसो : २५०१
तेनी द्रढतानी परीक्षा करवा कह्युं के तमे कागडानुं मांस खाव तो ज तमारो आ
रोग मटे तेम छे, बीजी कोई दवा लागु पडे तेम नथी.
त्यारे भीले द्रढताथी कह्युं के प्राण जाय तो भले जाय, पण मुनिराज
पासेथी लीधेली प्रतिज्ञाने तो हुं नहीं ज छोडुं.
पेला माणसे कह्युं–भाई, हठ छोडी दो. नकामुं मरण थशे. एकवार
औषधरूपे कागडानुं मांस खाई लो; पछी जीवता रहेशो तो फरीने व्रत लई
लेजो.
त्यारे भीले कह्युं: में मारा जीवनमां बीजुं तो कोई सत्यकार्य नथी कर्युं;
मांडमांड एक नानुं व्रत लीधुं छे, हुं एवो मूर्ख नथी के तेने पण छोडी दउं.
धर्मनो किंचित् स्नेह छे, ते हवे मरण अवस्थामां हुं केम छोडुं!–एम ते
पोतानी प्रतिज्ञामां द्रढ रह्यो.
तेनी द्रढता देखीने तेनो मित्र राजी थयो, ने रस्तामां यक्षदेवी साथे
थयेली बधी वात तेणे करी. त्यारे मात्र कागडानुं मांस छोडवानुं पण आवुं
महान फळ जाणीने ते भीलराजने जैन मुनिराज उपर वधु श्रद्धा बेठी अने
अहिंसाधर्मनो उत्साह वध्यो, तेथी तेणे मांसादिनो सर्वथा त्याग करीने
अहिंसादि पांच अणुव्रत धारण कर्या; अने पंचपरमेष्ठीनी भक्तिपूर्वक
शांतिथी प्राण छोडीने ते सौधर्मस्वर्गमां देव थयो. गौतमस्वामी कहे छे के हे
श्रेणीक! पछी ते देव मरीने तुं आ राजगृहीमां श्रेणीक राजा थयो छे.
भीलनां व्रतोनुं आवुं उत्तम फळ देखीने तेना कुशळ मित्रे पण अणुव्रत
धारण कर्या; त्यांथी ब्राह्मणनो अवतार करी अर्हत्दास शेठ पासे जैनसंस्कार
पामी ते पण स्वगे गयो; ने त्यांथी अवतरीने ते तारो पुत्र ‘अभयकुमार’
थयो छे, ते आ ज भवमां जैनमुनि थईने मोक्षने पामशे.
श्रेणीके पूछ्युं–हे राजन्! ते यक्षदेवी त्यार पछी केटलाक भव करीने
अनुक्रमे वैशालीना चेटक राजानी पुत्री थई,–जे तारी पटराणी ‘चेलणा’ छे
(आ चेलणा तेमज चंदना वगेरे महावीरप्रभुनी मासी थाय.)
आ प्रमाणे जैनधर्म जे अहिंसानो उपदेश आपे छे, तेनुं थोडुंक पण
पालन करतां आवुं फळ मळे छे तो संपूर्ण वीतरागभावरूप अहिंसानुं फळ
केवुं महान होय! ते ओळखजो....अने हे बंधुओ, शूरवीरपणे वीरना
अहिंसाधर्मनुं पालन करजो.