Atmadharma magazine - Ank 384
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: ३८ : आत्मधर्म : आसो : २५०१
महाराष्ट्रमां सोलापुर नजीक कुंथलगिरि–सिद्धक्षेत्र आवेलुं छे; त्यांथी
देशभूषण–कुलभूषण मोक्ष पधार्या छे. हालमां त्यां ए मुनिवरोनी सुंदर प्रतिमा
छे; तेमज सीमंधरभगवाननी प्रतिमा सहित बीजा अनेक मंदिरो छे. गुरुदेव
सहित अनेक भक्तोए कुंथलगिरि–सिद्धक्षेत्रनी यात्रा करी छे. ते सिद्धक्षेत्र अति
रळियामणुं छे. त्यांथी मोक्ष पामेला देशभूषण ने कुलभूषण बंने मुनिवरो
राजपुत्रो हता, ने चारभवथी तेओ सगाभाई हता.
पूर्वभवमां तेओ उदित–मुदित नामना भाई हता; तेमनी मातानुं नाम
उपभोगा, अने पिता अमृतसुर; ते अमृतसुरनो मित्र वसुभूति; ते वसुभूति
दुष्ट हतो ने उपभोगोमां आसक्त हतो. तेणे पोताना मित्र अमृतसुरने मारी
नांख्यो, ने तेनी स्त्री उपभोगाने ते वात करी. त्यारे दुष्ट उपभोगाए तेने कह्युं
के मारा बे पुत्रोने (उदित–मुदितने) पण तुं मारी नांख–के जेथी आपणा
दुष्कर्मने कोई जाणे नहि. अरेरे, विषयांध संसारी प्राणी! जुओ तो खरा,
विषयवासनाथी अंध थईने सगी माता पोतना पुत्रोने मारी नांखवा तैयार
थई छे!
–पण उपभोगा ने वसुभूतिनी दुष्ट वातचीत कोई सांभळी गयुं, ने
उदित–मुदितने तेनी खबर पडी गई के वसुभूति तेमने मारी नांखवा मांगे छे.
–आथी अत्यंत क्रोधित थईने ते बे भाईओए वसुभूतिने ज मारी नांख्यो.
मरीने ते जीव रूद्रपरिणामी म्लेच्छ–भील थयो.
त्यारबाद उदित अने मुदित बंने भाईओ मुनिराजनो उपदेश
सांभळीने वैराग्य पाम्या ने मुनि थया; तेओ सम्मेदशिखरनी यात्रा अर्थे
विहार करता करता मार्ग भूलीने एक भयानक अटवीमां आव्या; त्यां
वसुभूतिनो जीव के जे भील थयो हतो ते दुष्टभीले ते मुनिओने देख्या ने
पूर्वभवना वेरथी अत्यंत क्रोधित थईने तेमने मारवा तैयार थयो.
आ जोईने मोटामुनि उदिते नाना मुनि मुदितने कह्युं के: हे भ्रात!
मरणनो प्रसंग आव्यो छे,–पण तुं भय न करतो; क्षमाने अंगीकार करजे.
पूर्वभवमां दुष्कर्मी वसुभूतिने आपणे मारेलो, ते अत्यारे भील थईने
आपणने मारवा आव्यो छे. आपणे तो मुनि थईने उत्तमक्षमानो अभ्यास
कर्यो छे, आपणने क्रोध के वेर केवा?–माटे हे बंधु! तुं क्षमामां द्रढ रहेजे!
त्यारे मुदित–मुनि कहे छे–अहो बंधु! आपणे जिनर्मागना श्रद्धानी, देहथी