: ४० : आत्मधर्म : आसो : २५०१
महेलमां उभेली एक अति सुंदर राजकन्याने देखी; तेनुं अद्भुत रूप देखीने
बंने तेना पर मुग्ध बन्या. ते राजकन्या पण एकीटशे तेमने जोई रही. बंनेनुं
अद्भुत्त रूप नीहाळी–नीहाळीने ते पण प्रसन्न थती हती.
हवे एकसाथे आ देशभूषण–कुलभूषण–बंने भाईओने एम थयुं के
आ राजकन्या मारा माटे ज छे.....ते मारा उपर प्रसन्न थई छे ने हुं तेने
परणीश. परंतु बीजो भाई पण ए राजकन्या उपर ज नजर मांडीने तेने
रागथी नीहाळी रह्यो छे–ते देखीने तेना उपर द्वेष आव्यो के जो मारो भाई आ
कन्या उपर द्रष्टि करशे तो हुं तेने मारीने पण आ राजकन्याने परणीश–आम
मनमां ने मनमां तेओ एकबीजाने मारी नांखीने पण कन्याने परणवानुं
विचारता हता; बंनेनुं चित्त एक ज राजकुमारीमां एकदम आसक्त हतुं. तेथी
एकबीजा उपर द्वेष करता हता. कन्याना मोहवश बंने भाईओनुं चित्त
एकबीजा प्रत्ये निर्दय थई गयुं हतुं!
अरे विषयासक्ति! भाई–भाईना स्नेहने पण तोडावी नांखे छे!
अरेरे! चार चार भवथी परम स्नेह राखनारा बंने भाईओ विषयवश
एकबीजाने मारवा पण तैयार थया!
–एवामां तो, अमुक शब्दो काने पडतां बंने भाईओ चोंकी ऊठ्या....
जाणे वीजळी पडी होय एम बंने स्तब्ध थई गया.....शुं बन्युं!
तेमनी साथेना मंत्रीए तेमने कह्युं–देखो राजकुमारो! सामे राजमहेलना
झरूखामां तमारी बेन ऊभी छे ते घणा वर्षे तमने पहेली ज वार देखीने
अत्यंत प्रसन्न थई रही छे; ने पोताना भाई सामे एकी नजरे नीहाळी रही छे.
तमे विद्याभ्यास करवा गयेला त्यारे पाछळथी तेनो जन्म थयेलो, ते तमारी
बहेन तमने पहेली ज वार देखीने केवी खुशी थाय छे!
अरे! आ झरूखामां ऊभी ऊभी अमारा सामे हसे छे ते राजकन्या
बीजी कोई नहि पण अमारी ज सगी बहेन छे!–एम जाणतां ज बंने
भाईओना चित्तमां जबरजस्त आंचको लाग्यो; लज्जाथी तेओ ठरी ज गया!
अरेरे! आ तो अमारी बहेन! अमे तेने कदी जोयेली नहि तेथी ओळखी नहि;
अज्ञानने लीधे अमारी बहेन उपर ज अमे विकारथी मोहित थया! ने
एकबीजाने मारवाना विचार करवा लाग्या! हाय रे! अमने आवा दुष्टभाव
केम थया! अरेरे! आवा संसारमां शुं रहेवुं! हवे आवा संसारथी बस थाओ!
अनेक दुःखोथी भरेलो