Atmadharma magazine - Ank 384
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: ५० : आत्मधर्म : आसो : २५०१
धर्मात्माना ध्येयरूप ध्रुव आत्मा केवो छे
(मुमुक्षुओने माटे मननीय अंतर्मुखी प्रवचन)
गुरुदेव कहे छे के आ १९२ मी गाथा तो महामंत्र छे; आमां ध्रुव
आत्मानी उपलब्धिनी रीत आचार्यदेवे बतावी छे, पर्युषण दरमियान
आ गाथा चार वखत वंचाणी ने तेमां घणुं स्पष्टीकरण करीने
ध्रुवस्वभावी आत्मानो साक्षात्कार कराव्यो. आत्मा ध्रुव कया प्रकारे छे
ने तेने मानवाथी शुद्धात्मानी उपलब्धि कया प्रकारे थाय छे!–तेना मंत्रो
आ १९२ मी गाथामां भर्यां छे.
आ गाथाना गंभीर भावोनो ख्याल ए उपरथी आवशे के प्रवचनमां
उपरा उपरी चार–चार वखत वंचाया छतां, हजी जाणे फरीफरीने वंचाय तो
सारुं!–एम गुरुदेवने तेमज श्रोताजनोने थतुं हतुं.
आ गाथामां तथा तेनी टीकामां अने प्रवचनोमां एटलुं सुंदर
स्पष्टीकरण आव्युं छे के, शुद्ध आत्मानी उपलब्धि चाहनारा मुमुक्षुओने माटे ते
खूब ज विचारणीय छे, तेनुं मनन करतां आत्मानुं स्वरूप स्पष्ट समजमां
आवी जाय छे ने मुमुक्षुनी बधी मुंझवण मटी जाय छे. आत्मानुं स्वरूप समजवा
माटे ते पूरेपूरुं मार्गदर्शन आपे छे, ने ते समज्या पछी आत्मानी उपलब्धि
माटे बीजुं कांई समजवानुं बाकी नथी रहेतुं. आ गाथाना अने प्रवचनना
भावो समजवाथी जरूर सम्यग्दर्शन थाय छे एटले के ध्रुवरूप शुद्धआत्मानी
उपलब्धि थाय छे. (सं.)
* * * * *
ए रीत दर्शन–ज्ञान छे, ईन्द्रियअतीत–महार्थ छे,
मानुं हुं–आलंबन रहित जीव शुद्ध–निश्चळ–ध्रुव छे.
जुओ, आ ध्रुवआत्मानुं स्वरूप! एनो स्वीकार स्वसन्मुख पर्यायमां
थाय छे. तेथी आचार्यदेवे कह्युं के ‘मन्येहं’ हुं आवा आत्माने मानुं छुं–अनुभवुं
छुं–स्वसन्मुख थईने साक्षात्कार करुं छुं. जेणे पर्यायने अंतर्मुख करीने आवा ध्रुव
आत्माने मान्यो छे तेनी आ वात छे. जेणे पर्यायमां आवो आत्मा जाण्यो
नथी.