Atmadharma magazine - Ank 384
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: ७४ : आत्मधर्म : आसो : २५०१
रु आनंदनो महोत्सव रु
(महावीर – निर्वाणोत्सव संबंधी नाटक)
(आ नाटक द्वारा आपना घरमां पण निर्वाण महोत्सव (ऊजवो.)
हमणां दीवाळी आवशे ने महावीर भगवानना अढीहजारवर्षीय निर्वाण
महोत्सवनी धूमधामथी आखुं भारतवर्ष पुन: गाजी ऊठशे. प्रभुनो निर्वाण –
उत्सव आखुं वर्ष आनंदपूर्वक उजवायो; भारतना नाना–मोटा सौए आनंद–
पूर्वक तेमां भाग लीधो. भगवानना कल्याणकना विशेष प्रसंगोए ईन्द्र पण
पोतानो महान आनंद नाटक द्वारा व्यक्त करे छे, तेम जैन–बाळकोए पण नाटक
वगेरे अनेक प्रकारे पोतानो आनंद व्यक्त कर्यो. महावीर भगवाननी भक्ति अने
महिमा संबंधी अहीं एक नानकडुं नाटक रजू थाय छे. जैन – समाजना कोईपण
फिरकाना बाळको के बालिकाओ सौ संकोच वगर आ नाटक भजवी शकशे. नाटक
दीवाळी पहेलांं तेरस लगभगमां करवुं विशेष योग्य छे. आ नाटक भजववा
तमारे कोई ड्रेस –पडदा के स्टेजनी जरूर नथी; तमे बे –चार बाळको के भाई –
बहेनो तमारा घरमां पण आ नाटक संवादरूपे आनंदथी भजवी शको छो.
निर्वाणमहोत्सवनी पूर्णता पहेलांं जरूर आ नाटक भजवजो, ने महावीर
भगवाननां गुणगान करजो. (–सं.)
(त्रण वखत महावीर भगवानना जयनादपूर्वक शरूआत)
(वडील) आजे महान आनंदनो दिवस छे; आपणा शासनदेव महावीर
भगवान आजे मोक्ष पर्धा छे. जगतमां सैथी महान एवो जैनधर्म,
अने महावीर भगवान जेवो वीतरागी देव, महान भाष्यथी आपणने
प्राप्त थया छे. भगवाने आपणने सम्यग्द्रर्शन – ज्ञान–चारित्ररूप
मोक्षमार्ग बताव्यो छे, तेथी तेमनी जेटली भक्ति करीए ने जेटला
गुणगान करीए तेटला ओछा छे. आजना मंगल प्रसंगे एक नानकडा
नाटक द्वारा आपणे आपणो आनंद अने भक्ति व्यक्त करीए.
(बाळको) वाह, बहु सारुं! सौथी पहेलांं अमे मंगळ स्तुति बोलशुं –
करुं नमन हुं अरिहंत देवने;
करुं नमन हुं सिद्ध भगवंतने;