Atmadharma magazine - Ank 384
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 82 of 106

background image
: ७६ : आत्मधर्म : आसो : २५०१
(दरेक गाथा बे वार बोलवी)
अत्यंत आत्मोत्पन्न विषयातीत अनुप अनंत ने
विच्छेदहीन छे सुख अहो! शुद्धोपयोगी सिद्धने,
अशरीर ने अविनाश छे, निर्मळ अतीन्द्रिय शुद्ध छे,
जयम लोकअग्रे सिद्ध, ते रीत जाण सौ संसारीने.
(बेन) : वाह, भगवान आवा मोक्षपदने पाम्या; तो तेमनुं जीवन पण केवुं
अद्भुत हशे!
(भाई) : अरे, एनी शी वात! आपणा भगवानना अद्भुत महिमानी शुं तने
खबर नथी? – जो सांभळ! आपणा भगवान ए कांई राग–द्वेष
करवा माटे के जगतनुं भलुं – बूरुं करवा माटे नहोता अवतर्या, पण
ए तो वीतराग थईने भवने तरवा मो जन्म्या हता.
(बेन) : अने बीजी वात ए छे के भगवान पोते तो वीतराग थईने भवथी
तर्या ने मोक्षमार्गनो उपदेश आपीने आपणने पण भवथी तरवानो
उपाय बताव्यो. तेथी भगवान महान छे.
(भाई) : हा जुओ, ‘नमुत्थुणं’ मां पण भगवाननी स्तुति करतां कह्युं के –
ितन्नाणंद ।.... तारयाणं एटले हे भगवान! आप पोते तो
भवसमुद्रथी तरनारा छो; ने आत्मानुं स्वरूप बतावीने अमने पण
भवथी तारनारा छो.
– पण हें बहेन! तरवानो उपाय तो जगतना बधा धर्मो बतावे
ज छे ने?
(बेन) : ना भाई! ए वात खोटी छे. संसारथी तरवानो साचो उपाय तो
जैनधर्ममां आपणा भगवान महावीरे ज बताव्यो छे; ने ते ज एक
भवथी तरवानो साचो मार्ग छे, बीजो कोई मार्ग नथी.
(भाई) : वाह बेन, तुं तो विद्वान लागे छे! भगवाने संसारथी तरवानो उपाय
शुं कह्यो छे? ते बताव.
(बेन) : सांभळ भाई! बधा जैनशास्त्रोए ए वात स्वीकारी छे के सम्यग्द्रर्शन –
ज्ञान–चारित्र ते मोक्षमार्ग छे. आपणा भगवान महावीर सम्यग्द्रर्शन –
सम्यग्ज्ञान – सम्यक्चारित्रनो उपदेश आप्यो छे. एटले, जो आपणे