Atmadharma magazine - Ank 384
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २५०१ आत्मधर्म : ७७ :
भगवानना मार्गे चालवुं होय तो आपणे पण सम्यग्द्रर्शन,
सम्यग्ज्ञान ने सम्यक्चारित्रनी आराधना करवी जोईए.
(भाई) : वाह बेन, तें तो बहु ऊंची वात करी. पण बधायने समजाय तेवुं
कंईक कहे ने?
(बेन) : भाई! बहु ऊंची वात छे – ए खरूं; पण आपणो धर्म ऊंचो छे
एटले तेनी बधी वात पण ऊंची ज होय ने! ऊंचुं – ऊंचुं एवुं
मोक्षपद पामवा माटे ऊंचो – ऊंचो रस्तो ज लेवो जोईए ने!
(भाई) : बराबर छे, बेन! आपणा महावीर भगवाने पण एवो ऊंचो रस्तो
लीधो ज हतो ने!
(बेन) : हा जुओ, महावीर भगवान छेने, ते जीव पहेलांं तो अज्ञानी अने
मांसाहारी सिंह हतो; पण पछी ते जीव जैनधर्म पाम्यो. तेणे मांसाहार
छोडी दीधो ने मुनिराजना उपदेशथी आत्मस्वरूप ओळखीने तेणे
सम्यग्द्रर्शन प्रगट कर्युं. पछीना भवोमां साधु थई, वीतरागी चारित्र
पाळी केवळज्ञान प्रगट कर्युं ने अंते पावापुरीथी मोक्ष पधार्या. मोक्षने
माटे प्रभुए जेम कर्युं तेम आपणे पण करवुं जोईए.
(भाई) : वाह, प्रवीणाबेन! तमे तो भगवाननुं आखुं जीवनचरित्र बतावी
दीधुं; ते सांभळीने आनंद थाय छे ने महावीरप्रभुना मार्गे जवानी
भावना जागे छे.
(बेन) : हा, भाई! खरेखर आपणे वीरनां संतान छीए, ने वीप्रभुना मार्गे ज
आपणे जवानुं छे. आपणे जैन छीए; जैन एटले जिनवरनो संतान.
(बधा साथे –) अमे तो जिनवरनां संतान.... जिनवरपंथे विचरशुं....
गातां प्रभुजीनां गुणगान उज्वल आत्माने वरशुं...
अमे तो महावीरनां संतान, महावीर पंथ विचरशुं.....
करीने आत्मानी ओळखाण मुक्ति पंथे विचरशुं....
(वडील) : अहा, महावीर भगवाननो मार्ग केटलो सुंदर छे! केटलो महान छे!
महावीरनो मार्ग एटले वीतरागभाव! महावीरनो मार्ग एटले
मुक्तिनो मार्ग. ते मार्ग आजे आपणने मळ्‌यो छे, तो चालो! सौ
आनंदथी ते मार्ग जईए.