Atmadharma magazine - Ank 384
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २५०१ आत्मधर्म : ७९ :
सम्यग्द्रर्शन –ज्ञान करवा............ छे तैयार....... छे तैयार......
उत्तम चारित्र पालन करवा.......... छे तैयार....... छे तैयार......
मोक्षना मार्गे दोडी जावा............ छे तैयार....... छे तैयार......
भवबंधनथी छूटी जावा............ छे तैयार....... छे तैयार......
वीरना मार्गे दोडी जावा............ छे तैयार....... छे तैयार......
सिद्धप्रभुनी साथे रहेवा............ छे तैयार....... छे तैयार......
(बेन) : वाह, आपणो उत्साह अने भक्ति देखीने आपणा संघपतिजी (तथा
माताजी) अने बधा वडीलो केवा खुशी थाय छे! आपणे सौए कायम
आवा उत्साहथी ने आनंदथी धर्ममां रस लेवो जोईए.
(भाई) : जरूर बहेन! आजे तो महावीर भगवानना मोक्षनो उत्सव
उजववानी खूब मजा आवी.... आत्माने घणो लाभ थयो..... जाणे
धर्मचक्र चालवा मांड्युं. आत्मामां जाणे चैतन्य –दीवडा प्रगट्या ने
अपूर्व दीवाळी आवी.... साथे आनंद पण लावी?
(वडील) : अहा, भगवानना निर्वाणनो आवो आनंद – उत्सव आपणे आखुं
वर्ष ऊजव्यो, ने जीवनमां ते उत्सव सदाय ऊजववानो छे.... आ वर्षे
आवो महान उत्सव देखीने आपणने हवे महावीरनो रंग लाग्यो छे;
ते रंग हवे जीवनमां कदी छूटवानो नथी.
(बेन) : चालो, आपणे सौ वीरप्रभुनी भक्ति करीने आपणो आनंद व्यक्त
करीए.
(बधा साथे) : हा.... चालो..... चालो.....
(नीचेनामांथी कोई पण स्तवन सहित रास–भक्ति–करवी–)
(१) वीरप्रभुजी मोक्ष पधार्या, गौतम केवळज्ञान रे.... वीरजीनुं शासन झुले रे....
(स्तवनमंजरी पानुं – २८४)
(२) आजे वीरप्रभुजी निर्वाण पदने पामिया रे... (स्तवनमंजरी पानुं – ४३३)
(३) हे........ ए रंग लाग्यो..... रंग लाग्यो...
रंग लाग्यो, महावीर ! तारो रंग लाग्यो...
तारी भक्ति करवानो मने भाव जाग्यो,