Atmadharma magazine - Ank 384
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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श्रमणो, जिनो, तीर्थंकरो आ रीत सेवी मार्गने,
सिद्धि वर्या; नमुं तेमने, निर्वाणना ते मार्गने.
श्री वीरप्रभुए प्रकाशेला मोक्षमार्गमां परिणमता संतो परम
उपकारबुद्धिथी कहे छे के अहो, सर्वज्ञ महावीर देव! परद्रव्योथी भिन्न अने
स्वधर्मोथी अभिन्न एवा एक–शुद्ध–ध्रुव ज्ञायक आत्माने उपलब्ध करीने,
तेमां ज एकाग्रता वडे आपे मोक्षने साध्यो, ने अमने पण ए ज मार्गनो
उपदेश करीने आप निर्वाणपुरीमां बिराजी रह्या छो. – आपने नमस्कार हो.
प्रभो! आपनो ते निर्वाणमार्ग आजे अढी हजार वर्ष बाद अमने
पण प्राप्त थयो छे... ते मार्ग द्वारा आप ज अमने साक्षात् मळ्‌या छो.
आपना प्रसादथी प्राप्त थयेल मोक्षमार्ग अमे अवधारित कर्यो छे... ने
आनंदपूर्वक तेने साधवानुं कृत्य कराय छे.
जुओ, मोक्षमार्गी सन्तो बेधडक कहे छे के तीर्थंकरोना मार्गने अमे
धारण कर्यो छे ने ते मार्गे चाली रह्या छीए. आ रीते मोक्षमार्गनुं
अवधारण ए ज वीरनाथ भगवाननो साचो निर्वाण–महोत्सव छे.
– ‘जय महावीर