Atmadharma magazine - Ank 384
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २५०१ आत्मधर्म : ९१ :
जैन जवानोनुं जीवन
आपणे जैन – जवान... आपणे वीरना संतान!
आपणा जीवनमां वीर–ज्योत प्रगटावीने स्वाधीन स्व–पद प्राप्त करवुं –
ए आपणुं जीवनध्येय. युवान एटले शक्तिनो भंडार.... एनुं जीवन हंमेशां
अवनवी क्रांति माटे थनगनतुं होय छे.
आपणी पासे जबान उपरांत एक बीजुं विशेषण छे – जैन! ... केवुं
मजानुं आपणुं आ विशेषण छे! जैन एटले जीतनार.... पोतानी क्रांतिमां ए कदी
हारे नहि, पाछो पडे नहि,
आपणे जैन.. एटले आपणी क्रांति ए पण जैनक्रांति हशे. सम्यक्मार्ग वडे
मोहने जीतने आपणी अमूल्य गुणसंपदाने प्राप्त करवी – प्रगट करवी, ते माटेनी
आपण उत्क्रांति छे.
स्वराज लेवानी लडत वखते देशना जवानो केवा मरणीया थता! सामी
छातीए गोळीओनी रमझट वच्चे पण पोतानी स्वराजनी धूनने छोडता नहि के
राष्ट्रध्वजने नीचो नमवा देता नहि. मरणिया थईने ध्येय माटे झुझया ने अंते
सफळताने पाम्या.
तो आपणुं – जैन जवानोनुं ध्येय तो एनाथी पण घणुं – घणुं महान छे
– सुंदर छे, अने ध्येयमां जरूर सुख – शांति मळे तेवी गेरंटी छे. जैन – जवानोनुं
ध्येय छे – आत्मिकसुख! आत्मिक स्वराज! साची शांति! जेवुं सुख आपणा
अरिहंतोने मुनिवरो पाम्या एवुं सुख आपणे पामवुं छे. ते सुखने माटे मरणिया
थईने अज्ञाननी सामे ने कषायनी सामे लडवानुं छे. संसारमां खान–पान –
मकान – दुकान – वेपारधंधा – नोकरी – कुटुंब परिवार पुत्र – पुत्री, टेकस –
रोगादि चारे तरफथी अनेक प्रकारनी प्रतिकूळ व्याधिओरूपी गोळीबारनी रमझट
वच्चे पण सुख अने शांति – के जे आपणो अबाधित जन्मसिद्ध अधिकार छे, –
जे आपणी स्वकीय मालिकीनी ज वस्तु छे – ते प्राप्त करवा मरणियो थईने (अयि
कथमपि मृत्वा....) झझूमवानुं झझूमवानुं छे. वज पडे तो पण सुखनी धूनने
छोडवानी नथी; शांति पामवा माटे जैनसिद्धांतना ध्वजने कदी नीचो नमवा देवो
नथी. बस, प्यारा बंधुओ! वीरना वारसदारो! आपणा हाथमां ‘वीरनी ज्योत’
पकडीने आगे बढीए. वीरतापूर्वक आपणा ध्येयने माटे झझूमीए ने जीवनमां
आपणे सफळताने वरीशुं ज.... आपणुं जीवन उत्तम आत्मिकसुख – शांतिरूप
थशे ज! आ माटे आपणो मंत्र याद रखी ल्यो... हृदयमां लगावी दो! ... “जैन
जवान” ।.. ‘जैन – विज्ञान”