Alochana-Gujarati (Devanagari transliteration).

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षट् स्थानक समजावीने, भिन्न बताव्यो आप;
म्यानथकी तलवारवत्, ए उपकार अमाप.
जे स्वरूप समज्या विना, पाम्यो दुःख अनंत;
समजाव्युं ते पद नमुं, श्री सद्गुरु भगवंत.
परम पुरुष, प्रभु सद्गुरु, परमज्ञान सुखधाम;
जेणे आप्युं भान निज, तेने सदा प्रणाम.
देह छतां जेनी दशा, वर्त्ते देहातीत;
ते ज्ञानीना चरणमां, हो! वंदन अगणित
.
प्रणिपात-स्तुति
हे परमकृपाळु देव! जन्म, जरा, मरणादि सर्व
दुःखोनो अत्यंत क्षय करनारो एवो वीतराग पुरुषनो मूळ-
धर्म अनंतकृपा करी आप श्रीमदे मने आप्यो, ते अनंत
उपकारनो प्रत्युपकार वाळवा हुं सर्वथा असमर्थ छुं; वळी
आप श्रीमद् कंई पण लेवाने सर्वथा निःस्पृह छो; जेथी हुं
मन, वचन, कायानी एकाग्रताथी आपना चरणाविंदमां
नमस्कार करुं छुं.
आपनी परमभक्ति अने वीतराग पुरुषना मूळ धर्मनी
उपासना मारा हृदयने विषे भवपर्यंत अखंड जाग्रत रहो,
एटलुं मांगु छुं ते सफळ थाओ.
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः
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