भणे ते बुद्धिमान मनुष्य एवा उच्च पदने प्राप्त थाय छे के
जे पद मोटा मोटा मुनिओ चिरकालपर्यंत तप द्वारा घोर प्रयत्ने
पामी शके छे.
छे, तेथी मोक्षाभिलाषीओए श्री अरहंतदेव सामे श्री पद्मनंदि
आचार्य द्वारा रचायेली आलोचना नामनी कृतिनो पाठ त्रणे काळ
अवश्यमेव करवो जोईए.
आ पामर पर प्रभु कर्यो, अहो! अहो! उपकार.
शुं प्रभु चरण कने धरुं, आत्माथी सौ हीन;
ते तो प्रभुए आपियो, वर्तुं चरणाधीन.
आ देहादि आजथी, वर्तो प्रभु आधीन;
दास दास हुं दास छुं, आप प्रभुनो दीन.