भगवान ! जे सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप पदवी सर्वोत्कृष्ट
मोक्षरूप सुख आपनार छे ते में हजी सुधी प्राप्त करी नथी; तेथी
विनयपूर्वक प्रार्थना छे के कृपा करी मने सम्यक्दर्शन, सम्यग्ज्ञान
अने सम्यक्चारित्ररूपे पदवीनुं पूर्णतया प्रदान करो.
भगवाने (-वीरनंदी गुरुए) पोताना प्रसन्नचित्तथी सर्वोच्च
पदवीनी प्राप्ति अर्थे मारा चित्तमां उपदेशनी जे जमावट करी
छे अर्थात् उपदेश दीधो छे, ते उपदेश पासे क्षणमात्रमां
विनाशी एवुं पृथ्वीनुं राज्य मने प्रिय नथी. ते वात तो दूर
रही, परंतु हे प्रभो ! हे जिनेश ! ते उपदेश पासे त्रण
लोकनुं राज्य पण मने प्रिय नथी.
हे प्रभो ! श्री वीरनाथ भगवाने (-वीरनंदी गुरुए)
प्रसन्नचित्ते मने जे उपदेश आप्यो छे ते उपदेश प्रत्येना प्रेम
पासे आ बंने वातो मने इष्ट लागती नथी, तेथी हुं आवा
उपदेशनो ज प्रेमी छुं.