चारित्रपाहुड][८९
अर्थः––एवं अर्थात् इसप्रकार से श्रावकधर्मस्वरूप संयमचरण तो कहा, यह कैसा है? सकल अर्थात् कला सहित है, (यहाँ) एकदेशको कला कहते हैं। अब यतिधर्मके धर्मस्वरूप संयमचरणको कहूँगा––ऐसे आचार्यने प्रतिज्ञा की है। यतिधर्म कैसा है? शुद्ध है, निर्दोष है, जिसमें पापाचरणका लेश नहीं है, निकल अर्थात् कला से निःक्रांत है, सम्पूर्ण है, श्रावकधर्म की तरह एकदेश नहीं है।। २७।। आगे यतिधर्म की सामग्री कहते हैंः––
पंचेंदियसंवरणं पंच वया पंचविंसकिरियासु।
पंच समिदि तय गुत्ती संजमचरणं णिरायारं।। २८।।
पंच समिदि तय गुत्ती संजमचरणं णिरायारं।। २८।।
पंचेंद्रियसंवरणं पंच व्रताः पंचविंशतिक्रियासु।
पंच समितयः तिस्रः गुप्तयः संयमचरणं निरागारम्।। २८।।
पंच समितयः तिस्रः गुप्तयः संयमचरणं निरागारम्।। २८।।
अर्थः––पाँच इन्द्रियोंका संवर, पाँच व्रत ये पच्चीस क्रियाके सद्भाव होनेपर होते हैं,
पाँच समिति और तीन गुप्ति ऐसे निरागार संयमचरण चारित्र होता है।। २८।।
आगे पाँच इन्द्रियोंके संवरण का स्वरूप कहते हैंः–––
अमणुण्णे य मणुण्णे सजीवदव्वे अजीवदव्वे य।
ण करेदि रायदोसे पंचेंदियसंवरो भणिओ।। २९।।
ण करेदि रायदोसे पंचेंदियसंवरो भणिओ।। २९।।
अमनोज्ञे च मनोज्ञे सजीवद्रव्ये अजीवद्रव्ये च।
न करोति रागद्वेषौ पंचेन्द्रियसंवरः भणितः।। २९।।
न करोति रागद्वेषौ पंचेन्द्रियसंवरः भणितः।। २९।।
अर्थः––अमनोज्ञ तथा मनोज्ञ ऐसे पदार्थ जिनको लोग अपने मानें ऐसे सजीवद्रव्य स्त्री
पुजादिक और अजीवद्रव्य धन धान्य आदि सब पुद्गल द्रव्य आदिमें रागद्वेष न करे वह पाँच
इन्द्रियोंका संवर कहा है।
––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––
पंचेन्द्रिसंवर, पांच व्रत पच्चीशक्र्रियासंबद्ध जे,
वळी पांच समिति, त्रिगुप्ति–अण–आगार संयमचरण छे। २८।
सुमनोज्ञ ने अमनोज्ञ जीव–अजीवद्रव्योने विषे
वळी पांच समिति, त्रिगुप्ति–अण–आगार संयमचरण छे। २८।
सुमनोज्ञ ने अमनोज्ञ जीव–अजीवद्रव्योने विषे
करवा न रागविरोध ते पंचेन्द्रिसंवर उक्त छे। २९।