Ashtprabhrut (Hindi).

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१००] [अष्टपाहुड
बारंबार अभ्यास करो, इससे शीघ्र ही चार गतियोंको छोड़कर अपुनर्भव मोक्ष तुम्हें होगा, फिर
संसार में जन्म नहीं पाओगे।

भावार्थः––इस चारित्रपाहुडको वांचना, पढ़ना, धारण करना, बारम्बार भाना, अभ्यास
करना यह उपदेश है, इससे चारित्रका स्वरूप जानकर धारण करने की रुचि हो, अंगीकार
करे तब चार गतिरूप संसारके दुःख से रहित होकर निर्वाण को प्राप्त हो, फिर संसारमें जन्म
धारण नहीं करे; इसलिये जो कल्याणको चाहते हों वे इसप्रकार करो।। ४५।।
(छप्पन)
चारित दोय प्रकार देव जिनवरने भाख्या।
समकित संयम चरण ज्ञानपूरव तिस राखया।।
जे नर सरधावान याहि धारें विधि सेती।
निश्चय अर व्यवहार रीति आगम में जेती।।
जब जगधंधा सब मेटिकैं निजस्वरूपमें थिर रहै।
तब अष्टकर्मकूं नाशिकै अविनाशी शिवकूं लहै।। १।।

ऐसे सम्यक्त्वचरण चारित्र और संयमचरण चारित्र ––दो प्रकारके चारित्रका स्वरूप इस
प्राभृतमें कहा।
(दोहा)
जिनभाषित चारित्रकूं जे पाले मुनिराज।
तिनिके चरण नमूं सदा पाऊं तिनि गुणसाज।। २।।
इति श्री कुन्दकुन्दाचार्यस्वामि विरचित चारित्रप्राभृतकी पं० जयचन्द्रजी छाबड़ाकृत
देशभाषामय वचनिकाका हिन्दी भाषानुवाद समाप्त।। ३।।