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संयमशुद्धिकी कारण पंच समिति
९४
ज्ञानका लक्षण तथा आत्मा ही ज्ञान स्वरूप है
९५
मोक्षमार्गस्वरूप ज्ञानी का लक्षण
९६
परमश्रद्धापूर्वक रत्नत्रयका ज्ञाता ही मोक्षका भागी है
९६
निश्चय चारित्ररूप ज्ञानके धारक सिद्ध होते हैं
९७
इष्ट–अनिष्टके साधक गुणदोषका ज्ञान ज्ञानसे ही होता है सम्यग्ज्ञान सहित चारित्रका
धारक शीघ्र ही अनुपम सुखको प्राप्त होता है
९८
संक्षेपता से चारित्रका कथन
९९
चारित्र पाहुडकी भावना का फल तथा भावना का उपदेश
९९
४॰ बोधपाहुड
आचार्यकी स्तुति और ग्रन्थ करने की प्रतिज्ञा
१०१
आयतन आदि ११ स्थलोंके नाम
१०२
आयतनत्रयका लक्षण
१०३
टीकाकारकृत आयतनका अर्थ तथा इनसे विपरीत अन्यमत–स्वीकृतका निषेध
१०४
चैत्यगृहका कथन
१०५
जंगमथावर रूप जिनप्रतिमाका निरूपण
१०७
दर्शनका स्वरूप
१०९
जिनबिम्बका निरूपण
१११
जिनमुद्राका स्वरूप
११२
ज्ञानका निरूपण
११३
दृष्टान्त द्वारा ज्ञानका दृढ़ीकरण
११४
विनयसंयुक्तज्ञानीके मोक्ष की प्राप्ति होती है
११४
मतिज्ञानादि द्वारा मोक्षलक्ष्य सिद्धिमें बाण आदि दृष्टान्तका कथन
११५
देवका स्वरूप
११६
धर्म, दीक्षा और देवका स्वरूप
११६
तीर्थका स्वरूप
११७
अरहंतका स्वरूप
११८
नामकी प्रधानतासे गुणों द्वारा अरहंतका कथन
१२०
दोषोंके अभाव द्वारा ज्ञानमूर्ति अरहंतका कथन
१२१
गुणस्थानादि पंच प्रकारसे अरहंतकी स्थापना पंच प्रकार है
१२२
गुणस्थानस्थापनासे अरहंतका निरूपण
१२२
मार्गणा द्वारा अरहंतका निरूपण
१२३
पर्याप्तिद्वारा अरहंतका कथन
१२४
प्राणों द्वारा अरहंतका कथन
१२५
जीव स्थान द्वारा अरहंतका निरूपण
१२५
द्रव्यकी प्रधानतासे अरहंतका निरूपण
१२६
भावकी प्रधानता से अरहंतका निरूपण
१२७
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