Ashtprabhrut (Hindi).

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अरहंत के भावका विशेष विवेचन
१२८
प्रवज्या
(
दीक्षा
)
कैसे स्थान पर निर्वाहित होती है तथा उसका धारक पात्र कैसा होता
है?
१३१
सम्यक्त्व सहित चारित्र धारक स्त्री शुद्ध है पाप रहित है
६५
दीक्षाका अंतरंग स्वरूप तथा दीक्षा विषय विशेष कथन
१३२–१३६
दिक्षा का बाह्यस्वरूप, तथा विशेष कथन
१३६
प्रवज्याका संक्षिप्त कथन
१३७–१४२
बोधपाहुड
(
षट्जीवहितकर
)
का संक्षिप्त कथन
१४२
सर्वज्ञ प्रणीत तथा पूर्वाचार्यपरंपरागत–अर्थका प्रतिपादन
१४२–१४६
भद्रबाहुश्रुतकेवलीके शिष्यने किया है ऐसा कथन
१४६
श्रुतकेवली भद्रबाहुकी स्तुति
१४७
५॰ भावपाहुड
जिनसिद्धसाधुवंदन तथा भावपाहुड कहने की सूचना
१४९
द्रव्यभावरूपलिंगमें गुण दोषोंका उत्पादक भावलिंग ही परमार्थ है
१५०
बाह्यपरिग्रहका त्याग भी अंतरंग परिग्रहके त्यागमें ही सफल है
१५२
करोडों भव तप करने पर भी भावके बिना सिद्धि नहीं
१५२
भावके बिना
(
अशुद्ध परिणतिमें
)
बाह्य त्याग कार्यकारी नहीं
१५३
मोक्षमार्ग में प्रधानभाव ही है, अन्य अनेक लिंग धारने से सिद्धि नही
१५४
अनादि काल से अनंतानंत संसार में भावरहित बाह्यलिंग अनंतबार छोडे़ तथा ग्रहण
किये हैं
१५४
भावके बिना सांसारिक अनेक दुखोंको प्राप्त हुआ है, इसलिये जिनोक्त भावना की
भावना करो
१५५
नरकगति के दुःखोंका वर्णन
१५५
तिर्यंच गति के दुःखोंका वर्णन
१५६
मनुष्य गति के दुःखोंका वर्णन
१५७
देचगति के दुःखोंका वर्णन
१५७
द्रव्यलिंगी कंदर्पी आदि पांच अशुभ भावनाके निमित्तसे नीच देव होता है
१५८
कुभावनारूप भाव कारणोंसे अनेकबार अनंतकाल पार्श्वस्थ भावना भाकर दुःखी हुआ
१५९
हीन देव होकर महर्द्धिक देवोंकी विभूति देखकर मानसिक दुःख हुआ
१५९
मदमत्त अशुभभावनायुक्त अनेक बार कुदेव हुआ
१६०
गर्भजन्य दुःखोंका वर्णन
१६१
जन्म धारणकर अनंतानंत बार इतनी माताओंका दूध पीया कि जिसकी तुलना समुद्र
जल से भी अधिक है
१६१
अनंतबार मरण से माताओंके अश्रुओंकी तुलना समुद्र जल से अधिक है
१६२
अनंत जन्म के नख तथा केशोंकी राशि भी मेरू से अधिक है
१६२
जल थल आदि अनेक तीन भुवनके स्थानोंमें बहुत बार निवास किया
१६३
जगतके समस्त पुद्गलोंको अनन्तबार भोगा तो भी तृप्ति नहीं हुई
१६३