Ashtprabhrut (Hindi).

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विषय
पृष्ठ
तीन भुवन संबन्धी समस्त जल पिया तो भी प्यास शांत न हुई
१६४
अनंत भव सागरमें अनेक शरीर धारण किये जिनका कि प्रमाण भी नहीं
१६४
विषादि द्वारा मरण कर अनेकबार अपमृत्युजन्य तीव्र दुःख पाये
१६५
निगोद के दुःखोंका वर्णन
१६६
क्षुद्र भवोंका कथन
१६७
रत्नत्रय धारण करनेका उपदेश
१६८
रत्नत्रयका सामान्य लक्षण
१६८
जन्ममरण नाशक सुमरण का उपदेश
१६९
टीकाकर वर्णित १७ सुमरणोंसे भेद तथा सर्व लक्षण
१६९–१७२
द्रव्य श्रमण का त्रिलोकी में ऐसा कोई भी परमाणुमात्र क्षेत्र नहीं जहाँ की जन्म मरण को
प्राप्त नहीं हुआ। भावलिंग के बिना बाह्य जिनलिंग प्राप्तिमें भी अनंतकाल दुःख सहे
१७२
पुद्गलकी प्रधानतासे भ्रमण
१७४
क्षेत्रकी प्रधानतासे भ्रमण और शरीरके राग प्रमाणकी अपेक्षासे दुःखका वर्णन
१७४
अपवित्र गर्भ–निवासकी अपेक्षा दुःख का वर्णन
१७६
बाल्य अवस्था संबंधी वर्णन
१७७
शरीरसम्बन्धी अशुत्विका विचार
१७७
कुटुम्बसे छूटना वास्तविक छूटना नहीं, किन्तु भावसे छूटना ही वास्तविक छूटना है
१७८
मुनि बाहुबलीजी के समान भावशुद्धिके बिना बहुत काल पर्यंत सिद्धि नहीं हुई
१७९
मुनि पिंगलका उदाहरण तथा टीकाकार वर्णित कथा
१७९
वशिष्ट मुनिका उदाहरण और कथा
१८१
भावके बिना चौरासी योनियोंमें भ्रमण
१८२
बाहु मुनिका दृष्टांत और कथा
१८४
द्वीपायन मुनिका उदाहरण और कथा
१८५
भावशुद्धिकी सिद्धिमें शिवकुमार मुनिका दृष्टांत तथा कथा
१८६
भावशुद्धि बिना विद्वत्ता भी कार्यकारी नहीं उसमें उदाहरण अभव्यसेन मुनि
१८७
विद्वत्ता बिना भी भावशुद्धि कार्यकारिणी है उसका दृष्टांत शिवभूती तथा शिवभूतीकी
कथा
१८७
नग्नत्वकी सार्थकता भावसे ही है
१८८
भावके बिना कोरा नग्नत्व कार्यकारी नहीं
१८९
भावलिंग का लक्षण
१८९
भावलिंगी के परिणामोंका वर्णन
१९०
मोक्षकी इच्छामें भावशुद्ध आत्मा का चिंतवन
१९२
आत्म–चिंतवन भी निजभाव सहित कार्यकारी है
१९२
सर्वज्ञ प्रतिपादित जीवका स्वरूप
९९३
जिसने जीवका अस्तित्व अंगीकार किया है उसीके सिद्धि है
१९४
जीवका स्वरूप वचनगम्य न होनेपर भी अनुभवगम्य है
१९४
पंचप्रकार ज्ञानभी भावनाका फल है
१९५