Ashtprabhrut (Hindi).

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विषय
पृष्ठ
भाव बिना पठन श्रवण कार्यकारी नहीं
१९६
बाह्य नग्नपने से ही सिद्धि हो, तो तिर्यंच आदि सभी नग्न हैं
१९६
भाव बिना केवल नग्नपना निष्फल ही है
१९७
पाप मलिन कोरा नग्न मुनि अपयश का ही पात्र है
१९८
भावलिंगी होनेका उपदेश
१९८
भावरहित कोरा नग्न मुनि निर्गुण निष्फल
१९९
जिनोक्त समाधि बोधी द्रव्यलिंगी के नहीं
१९९
भावलिंग धारण कर द्रव्यलिंग धारण करना ही मार्ग है
२००
शुद्धभाव मोक्षका कारण अशुद्धभाव संसार का कारण
२०१
भावके फलका महात्म्य
२०१
भावोंके भेद और उनके लक्षण
२०२
जिनशासन का महात्म्य
२०३
दर्शनविशुद्धि आदि भावशुद्धि तीर्थंकर प्रकृति के भी कारण हैं
२०३
विशुद्धि निमित्त आचरणका उपदेश
२०४
जिनलिंग का स्वरूप
२०५
जिनधर्म की महिमा
२०६
प्रवृत्ति निवृत्तिरूप धर्मका कथन, पुण्य धर्म नहीं है, धर्म क्या है?
२०७
पुण्य प्रधानताकर भोगका निमित्त है। कर्मक्षय का नहीं
२०८
मोक्षका कारण आत्मीक स्वभावरूप धर्म ही है
२०८
आत्मीक शुद्ध परिणति के बिना अन्य समस्त पुण्य परिणति सिद्धि से रहित हैं
२०९
आत्मस्वरूपका श्रद्धान तथा ज्ञान मोक्षका साधक है ऐसा उपदेश
२०९
बाह्य हिंसादि क्रिया बिना सिर्फ अशुद्ध भाव भी सप्तम नरक का कारण है उसमें
उदाहरण–तंदुल मत्स्यकी कथा
२१०
भाव बिना बाह्य परिग्रहका त्याग निष्फल है
२११
भाव शुद्धि निमित्तक उपदेश
२१२
भाव शुद्धिका फल
२१३
भाव शुद्धिके निमित्त परिषहों के जीतने का उपदेश
२१४
परीषह विजेता उपसर्गों से विचलित नहीं होता उसमें दृष्टांत
२१४
भावशुद्धि निमित्त भावनाओं का उपदेश
२१५
भावशुद्धि में ज्ञानाभ्यास का उपदेश
२१६
भावशुद्धिके निमित्त ब्रह्मचर्य के आरम्भका कथन
२१६
भावसहित चार आराधनाको प्राप्त करता है, भावसहित संसार में भ्रमण करता है
२१७
भाव तथा द्रव्यके फल का विशेष
२१८
अशुद्ध भाव से ही दोष दुषित आहार किया, फिर उसी से दुर्गतिके दुःख सहे
२१८
सचित्त त्याग का उपदेश
२१९
पंचप्रकार विनय पालन का उपदेश
२२०
वैयावृत्य का उपदेश
२२१