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लगे हुए दोषोंको गुरुके सन्मुख प्रकाशित करने का उपदेश
२२२
क्षमा का उपदेश
२२२
क्षमाका फल
२२३
क्षमा के द्वारा पूर्व संचित क्रोधके नाशका उपदेश
२२४
दीक्षाकाल आदि की भावना का उपदेश
२२४
भावशुद्धिपूर्वक ही चार प्रकार का बाह्य लिंग कार्यकारी है
२२५
भाव बिना आहारादि चार संज्ञाके परवश होकर अनादिकाल संसार भ्रमण होता है
२२६
भावशुद्धिपूर्वक बाह्य उत्तर गुणोंकी प्रवृत्तिका उपदेश
२२६
तत्त्व की भावना का उपदेश
२२७
तत्त्व भावना बिना मोक्ष नहीं
२२९
पापपुण्यरूप बंध तथा मोक्षका कारण भाव ही है
२३०
पाप बंध के कारणों का कथन
२३०
पुण्य बंध के कारणों का कथन
२३१
भावना सामान्यका कथन
२३२
उत्तर भेद सहित शीलव्रत भानेका उपदेश
२३३
टीकाकर द्वारा वर्णित शीलके अठारह हजार भेद तथा चौरासीलाख उत्तर गुणों का
वर्णन, गुणस्थानों की परिपाटी
२३३–२३६
धर्मध्यान शुक्लध्यानके धारण तथा आर्त्तरौद्रके त्याग का उपदेश
२३६
भवनाशक ध्यान भावश्रमण के ही है
२३७
ध्यान स्थिति में दृष्टांत
२३८
पंचगुरुके ध्यावने का उपदेश
२३८
ज्ञानपूर्वक भावना मोक्षका कारण
२३९
भावलिंगी के संसार परिभ्रमण का अभाव होता है
२४०
भाव धारण करनेका उपदेश तथा भावलिंगी उत्तमोत्तम पद तथा उत्तमोत्तम सुख को
प्राप्त करता है
२४१
भावश्रमण को नमस्कार
२४२
देवादि ऋद्धि भी भावश्रमण को मोहित नहीं करतीं तो फिर अन्य संसार के सुख क्या
मोहित कर सकते हैं
२४२
जब तक जरारोगादि का आक्रमण न हो तब तक आत्मकल्याण करो
२४४
अहिंसा धर्मका उपदेश
२४४
चार प्रकार के मिथ्यात्वियोंके भेदोंका वर्णन
२४६
अभव्य विषयक कथन
२४८
मिथ्यात्व दुर्गति का निमित्त है
२५०
तीन सौ त्रैसठ प्रकारके पाखंडियोंके मत को छुड़ानेका और जिनमत में प्रवृत्त करने का
उपदेश है
२५१
सम्यग्दर्शनके बिना जीव चलते हुए मुर्दे के समान है, अपूज्य है
२५२
सम्यक्त्व की उत्कृष्टता
२५२