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सम्यग्दर्शन सहित लिंग की प्रशंसा
२५३
दर्शन रत्नके धारण करने का आदेश
२५४
असाधारण धर्मों द्वारा जीवका विशेष वर्णन
२५४–२५६
जिनभावना–परिणत जीव घातिकर्मका नाश करता है
२५६
घातिकर्म का नाश अनंत चतुष्टय का कारण है
२५७
कर्म रहित आत्मा ही परमात्मा है, उसके कुछ एक नाम
२५८
देवसे उत्तम बोधि की प्रार्थना
२५९
जो भक्ति भावसे अरहंतको नमस्कार करते हैं वे शीघ्र ही संसार बेलिका नाश करते हैं
२६०
जलस्थित कमलपत्रके समान सम्यग्दृष्टि विषयकषायों से अलिप्त हैं
२६०
भावलिंगी विशिष्ट द्रव्यलिंगी मुनि कोरा द्रव्य लिंगी है और श्रावक से भी नीचा है
२६१
धीर वीर कौन?
२६२
धन्य कौन?
२६२
मुनि महिमा का वर्णन
२६३
मुनि सामर्थ्य का वर्णन
२६३
मूलोत्तर–गुण–सहित मुनि जिनमत आकाशमें तारागण सहित पूर्ण चंद्र समान है
२६४
विशुद्ध भाव के धारक ही तीर्थंकर चक्री आदि के पद तथा सुख प्राप्त करते हैं
२६५
विशुद्ध भाव धारक ही मोक्ष सुख को प्राप्त होते हैं
२६५
शुद्धभाव निमित्त आचार्य कृत सिद्ध परमेष्ठी की प्रार्थना
२६६
चार पुरुषार्थ तथा अन्य व्यापार सर्व भाव में ही परिस्थिति हैं, ऐसा संक्षिप्त वर्णन
२६७
भाव प्राभृत के पढ़ने सुनने मनन करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है ऐसा उपदेश तथा
पं॰ जयचंदजी कृत ग्रन्थ का देश भाषा में सार
२६७–२७०
६॰ मोक्षपाहुड
मंगल निमित्त देव को नमस्कार
२७१
देव नमस्कृति पूर्वक मोक्ष पाहुड लिखने की प्रतिज्ञा
२७२
परमात्मा के ज्ञाता योगी को मोक्ष प्राप्ति
२७२
आत्मा के तीन भेद
२७३
आत्मत्रयका स्वरूप
२७४
परमात्माका विशेष स्वरूप
२७४
बहिरात्मा को छोड़कर परमात्मा को ध्याने का उपदेश
२७५
बहिरात्मा का विशेष कथन
२७६
मोक्ष की प्राप्ति किसके है
२७८
बंधमोक्षके कारण का कथन
२७९
कैसा हुआ मुनि कर्म का नाश करता है
२७९
कैसा हुआ कर्म का बंध करता है
२८०
सुगति और दुर्गति के कारण
२८१
परद्रव्य का कथन
२८१
स्वद्रव्यका कथन
२८२