Ashtprabhrut (Hindi).

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विषय
पृष्ठ
निर्वाण की प्राप्ति किस द्रव्य के ध्यान से होती है
२८२
जो मोक्ष प्राप्त कर सकता है उसे स्वर्ग प्राप्ति सुलभ है
२८३
इसमें दृष्टांत
२८४
स्वर्ग मोक्ष के कारण
२८५
परमात्मस्वरूप प्राप्ति के कारण और उस विषय का दृष्टांत
२८५
दृष्टांत द्वारा श्रेष्ठ–अश्रेष्ठ का वर्णन
२८६
आत्मध्यान की विधि
२८७
ध्यानावस्थामें मौनका हेतुपूर्वक कथन
२८८
योगी का कार्य
२८९
कौन कहाँ सोता तथा जागता है
२९०
ज्ञानी योगीका कर्तव्य
२९०
ध्यान अध्ययनका उपदेश
२९१
आराधक तथा आराधनाकी विधिके फल का कथन
२९२
आत्मा कैसा है
२९२
योगी को रत्नत्रयकी आराधनासे क्या होता है
२९३
आत्मामें रत्नत्रय का सद्भाव कैसा
२९३
प्रकारान्तर से रत्नत्रयका कथन
२९४
सम्यग्दर्शनका प्राधान्य
२९४
सम्यग्ज्ञान का स्वरूप
२९४
सम्यक्चारित्र का लक्षण
२९७
परम पद को प्राप्त करने वाला कैसा हुआ होता है
२९८
कैसा हुआ आत्मा का ध्यान करता है
२९९
कैसा हुआ उत्तम सुख को प्राप्त करता है
३००
कैसा हुआ मोक्ष सुखको प्राप्त नहीं करता
३००
जिनमुद्रा क्या है
३०१
परमात्माके ध्यानसे योगीके क्या विशेषता होती है
३०२
जीव के विशुद्ध अशुद्ध कथन में दृष्टांत
३०४
सम्यक्त्व सहित सरागी योगी कैसा
३०४
कर्मक्षय की अपेक्षा अज्ञानी तपस्वी में विशेषता
३०५
अज्ञानी ज्ञानी का लक्षण
३०६
ऐसे लिंग ग्रहण से क्या सुख
३०८
सांख्यादि अज्ञानी क्यों और जैन में ज्ञानित्व किस कारण से
३०९
ज्ञानतप की संयुक्तता मोक्ष की साधक है पृथक् पृथक् नहीं
३०९
स्वरूपाचरण चारित्र से भ्रष्ट कौन
३११
ज्ञानभावना कैसी कार्यकारी है
३११
किनको जीतकर निज आत्माका ध्यान करना
३१२
ध्येय आत्मा कैसा
३१२