विषय
निर्वाण की प्राप्ति किस द्रव्य के ध्यान से होती है
जो मोक्ष प्राप्त कर सकता है उसे स्वर्ग प्राप्ति सुलभ है
इसमें दृष्टांत
स्वर्ग मोक्ष के कारण
परमात्मस्वरूप प्राप्ति के कारण और उस विषय का दृष्टांत
दृष्टांत द्वारा श्रेष्ठ–अश्रेष्ठ का वर्णन
आत्मध्यान की विधि
ध्यानावस्थामें मौनका हेतुपूर्वक कथन
योगी का कार्य
कौन कहाँ सोता तथा जागता है
ज्ञानी योगीका कर्तव्य
ध्यान अध्ययनका उपदेश
आराधक तथा आराधनाकी विधिके फल का कथन
आत्मा कैसा है
योगी को रत्नत्रयकी आराधनासे क्या होता है
आत्मामें रत्नत्रय का सद्भाव कैसा
प्रकारान्तर से रत्नत्रयका कथन
सम्यग्दर्शनका प्राधान्य
सम्यग्ज्ञान का स्वरूप
सम्यक्चारित्र का लक्षण
परम पद को प्राप्त करने वाला कैसा हुआ होता है
कैसा हुआ आत्मा का ध्यान करता है
कैसा हुआ उत्तम सुख को प्राप्त करता है
कैसा हुआ मोक्ष सुखको प्राप्त नहीं करता
जिनमुद्रा क्या है
परमात्माके ध्यानसे योगीके क्या विशेषता होती है
जीव के विशुद्ध अशुद्ध कथन में दृष्टांत
सम्यक्त्व सहित सरागी योगी कैसा
कर्मक्षय की अपेक्षा अज्ञानी तपस्वी में विशेषता
अज्ञानी ज्ञानी का लक्षण
ऐसे लिंग ग्रहण से क्या सुख
सांख्यादि अज्ञानी क्यों और जैन में ज्ञानित्व किस कारण से
ज्ञानतप की संयुक्तता मोक्ष की साधक है पृथक् पृथक् नहीं
स्वरूपाचरण चारित्र से भ्रष्ट कौन
ज्ञानभावना कैसी कार्यकारी है
किनको जीतकर निज आत्माका ध्यान करना
ध्येय आत्मा कैसा