Ashtprabhrut (Hindi).

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विषय
पृष्ठ
उत्तरोत्तर दुर्लभता से किनकी प्राप्ति होती है
३१३
जब तक विषयों में प्रवृत्ति है तब तक आत्मज्ञान नहीं
३१४
कैसा हुआ संसार में भ्रमण करता है
३१४
चतुर्गति का नाश कौन करते हैं?
३१५
अज्ञानी विषयक विशेष कथन
३१५
वास्तविक मोक्ष प्राप्ति कौन करते हैं?
३१६
कैसा राग संसार का कारण है
३१७
समभाव से चारित्र
३१७
ध्यान योगके समयके निषेधक कैसे हैं
३१८
पंचमकाल मेह धर्म ध्यान नहीं मानते हैं वे अज्ञानी हैं
३१९
इस समय भी रत्नत्रय शुद्धिपूर्वक आत्मध्यान इंद्रादि फलका दाता है
३२०
मोक्षमार्ग में च्युत कौन?
३२१
मोक्षमार्गी मुनि कैसे होते हैं?
३२२
मोक्ष प्रापक भावना
३२३
फिर मोक्षमार्गी कैसे?
३२३
निश्चयात्मक ध्यान का लक्षण तथा फल
३२४
पापरहित कैसा योगी होता है
३२५
श्रावकोंका प्रधान कर्तव्य निश्चलसम्यक्त्व प्राप्ति तथा उसका ध्यान और ध्यानका फल
३२६
जो सम्यक्त्वको मलिन नहीं करते वे कैसे कहे जाते हैं
३२७
सम्यक्त्व का लक्षण
३२८
सम्यक्त्व किसके है
३२९
मिथ्यादृष्टि का लक्षण
३३०
मिथ्या की मान्यता सम्यग्दृष्टि के नहीं तथा दोनोंका परस्पर विपरीत धर्म
३३१
कैसा हुआ मिथ्यादृष्टि संसारमें भ्रमता है
३३२
मिथ्यात्वी लिंगी की निर्थकता
३३३
जिनलिंग का विरोधक कौन?
३३४
आत्मस्वभावसे विपरीत कार्य सभी व्यर्थ है
३३५
ऐसा साधु मोक्ष की प्राप्ति करता है
३३६
देहस्थ आत्मा कैसा जानने योग्य है
३३७
पंच परमेष्ठी आत्मा में ही हैं अतः वही शरण हैं
३३८
चारों आराधना आत्मा में ही हैं अतः वही शरण हैं
३३९
मोक्ष पाहुड पढ़ने सुनने का फल
३४०
टीकाकार कृत मोक्षपाहुड का साररूप कथन
३४०–३४२
ग्रंथके अलावा टीकाकार कृत पंच नमस्कार मंत्र विषयक विशेष वर्णन
३४३–३४६