Ashtprabhrut (Hindi).

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विषय
पृष्ठ
७॰ लिंगपाहुड
अरहंतोंको नमस्कारपूर्वक लिंगपाहुड बनाने की प्रतीज्ञा
३४७
भावधर्म ही वास्तविक लिंग प्रधान है
३४८
पापमोहित दुबुद्धि नारदके समान लिंग की हंसी कराते हैं
३४९
लिंग धारण कर कुक्रिया करते हैं वे तिर्यंच हैं
३४९
ऐसा तिर्यंच योनि है मुनि नहीं
३५०
लिंगरूपमें खोटी क्रिया करनेवाला नरकगामी है
३५०
लिंगरूपमें अब्रह्म का सेवने वाला संसार में भ्रमण करता है
३५१
कौनसा लिंगी अनन्त संसारी है
३५२
किस कर्म का करने वाला लिंगी नरक गामी है
३५२
फिर कैसा हुआ तिर्यंच योनी है
३५४
केसा जिनमार्गी श्रमण नहीं हो सकता
३५५
चौर के समान कौन सा मुनि कहा जाता है
३५६
लिंगरूपमें कैसी क्रियायें तिर्यंचताकी द्योतक हैं
३५६
भावरहित भ्रमण नहीं है
३४७
स्त्रियोंका संसर्ग विशेष रखने वाला श्रमण नहीं पर्श्वस्थ से भी गिरा है
३४७
पुंश्चलकिे घर भोजन तथा उसकी प्रशंसा करनेवाला ज्ञानभाव रहित है श्रमण नहीं
३६०
लिंगपाहुड धारण करके न पालनेका तथा पालने का फल
३६०–३६१
८॰ शीलपाहुड
महावीर स्वामी को नमस्कार और शीलपाहुड लिखने की प्रतीज्ञा
३६३
शील और ज्ञान परस्पर विरोध रहित हैं, शीलके बिना ज्ञान भी नहीं
३६४
ज्ञान होने पर भी भवना विषय विरक्त उत्तरोत्तर कठिन है
३६६
जब तक विषयोंमें प्रवृत्ति है तब तक ज्ञान नहीं जानता तथा कर्मोंका नाश भी नहीं
३६६
कैसा आचरण निरर्थक है
३६७
महाफल देनेवाला कैसा आचरण होता है
३६८
कैसे हुए संसार में भ्रमण करते हैं
३६८
ज्ञानप्राप्ति पूर्वक कैसे आचरण संसार का करते हैं
३६९
ज्ञान द्वारा शुद्धि में सुर्वण का दृष्टांत
३६९
विषयों में आसक्ति किस दोष से है
३७०
निर्वाण कैसे होता है
३७०
नियमसे मोक्ष प्राप्ति किसके है
३७१
किनका ज्ञान निरर्थक है
३७१
कैसे पुरुष आराधना रहित होते हैं
३७२
किनका मनुष्य जन्म निरर्थक है
३७३
शास्त्रोंका ज्ञान होने पर भी शील ही उत्तम है
३७४
शील मंडित देवों के भी प्रिय होते हैं
३७४