विषय
अरहंतोंको नमस्कारपूर्वक लिंगपाहुड बनाने की प्रतीज्ञा
भावधर्म ही वास्तविक लिंग प्रधान है
पापमोहित दुबुद्धि नारदके समान लिंग की हंसी कराते हैं
लिंग धारण कर कुक्रिया करते हैं वे तिर्यंच हैं
ऐसा तिर्यंच योनि है मुनि नहीं
लिंगरूपमें खोटी क्रिया करनेवाला नरकगामी है
लिंगरूपमें अब्रह्म का सेवने वाला संसार में भ्रमण करता है
कौनसा लिंगी अनन्त संसारी है
किस कर्म का करने वाला लिंगी नरक गामी है
फिर कैसा हुआ तिर्यंच योनी है
केसा जिनमार्गी श्रमण नहीं हो सकता
चौर के समान कौन सा मुनि कहा जाता है
लिंगरूपमें कैसी क्रियायें तिर्यंचताकी द्योतक हैं
भावरहित भ्रमण नहीं है
स्त्रियोंका संसर्ग विशेष रखने वाला श्रमण नहीं पर्श्वस्थ से भी गिरा है
पुंश्चलकिे घर भोजन तथा उसकी प्रशंसा करनेवाला ज्ञानभाव रहित है श्रमण नहीं
लिंगपाहुड धारण करके न पालनेका तथा पालने का फल
महावीर स्वामी को नमस्कार और शीलपाहुड लिखने की प्रतीज्ञा
शील और ज्ञान परस्पर विरोध रहित हैं, शीलके बिना ज्ञान भी नहीं
ज्ञान होने पर भी भवना विषय विरक्त उत्तरोत्तर कठिन है
जब तक विषयोंमें प्रवृत्ति है तब तक ज्ञान नहीं जानता तथा कर्मोंका नाश भी नहीं
कैसा आचरण निरर्थक है
महाफल देनेवाला कैसा आचरण होता है
कैसे हुए संसार में भ्रमण करते हैं
ज्ञानप्राप्ति पूर्वक कैसे आचरण संसार का करते हैं
ज्ञान द्वारा शुद्धि में सुर्वण का दृष्टांत
विषयों में आसक्ति किस दोष से है
निर्वाण कैसे होता है
नियमसे मोक्ष प्राप्ति किसके है
किनका ज्ञान निरर्थक है
कैसे पुरुष आराधना रहित होते हैं
किनका मनुष्य जन्म निरर्थक है
शास्त्रोंका ज्ञान होने पर भी शील ही उत्तम है
शील मंडित देवों के भी प्रिय होते हैं