विषय
मनुष्यत्व किनका सुजीवित है
शीलका परिवार
तपादिक सब शील ही है
विषयरूपी विष ही प्रबल विष है
विषयासक्त हुआ कि फलको प्राप्त होता है
शीलवान तुष के समान विषयोंका त्याग करता है
अंगके सुन्दर अवयवोंसे भी शील ही सुन्दर है
मूढ़ तथा विषयी संसार में ही भ्रमण करते हैं
कर्मबंध कर्मनाशक गुण सब गुणों की शोभा शील से है
मोक्षका शोध करने वाले ही शोध्य हैं
शीलके बिना ज्ञान कार्यकारी नहीं उसका सोदाहरण वर्णन
नारकी जीवोंको भी शील अर्हद्–विभूतिसे भूषित करता है उसमें वर्धमान जिन का दृष्टांत
अग्निके समान पंचाचार कर्मका नाश करते हैं
कैसे हुए सिद्ध गति को प्राप्त करते हैं
शीलवान महात्माका जन्मवृक्ष गुणोंसे विस्तारित होता है
किसके द्वारा कौन बोधी की प्राप्ति करता है
कैसे हुए मोक्ष सुख को पाते हैं
आराधना कैसे गुण प्रगट करती है
ज्ञान वही है जो सम्यक्त्व और शील सहित है
टीकाकर कृत शीलपाहुड का सार
टीकाकार की प्रशस्ति