ऊँ
नमः सिद्धेभ्यः
स्वामि कुन्दकुन्दाचार्य विरचित
अष्टपाहुड
भाषा – वचनिका
(श्री पं॰ जयचन्द्रजी छाबड़ा)
अथ दर्शनपाहुड
–१–
दोहा
श्रीमत वीर जिनेश रवि मिथ्यातम हरतार ।
विघनहरन मंगलकरन बंदूं वृष करतार ।।१।।
वानी बंदूं हितकारी जिनमुख–नभतैं गाजि ।
गुणधरगणश्रुतभू – झरी – बंदू –वर्णपद साजी ।।२।।
गुरु गौतम बंदूं सुविधि संयमतपधर और ।
जिनितैं पंचमकालमैं बरत्यो जिनमत दौर ।।३।।
कुन्दकुन्दमुनिकूं नमूं कुमतध्वांतहर भान ।
पाहुड ग्रन्थ रचे जिनहिं प्राकृत वचन महान ।।४।।
तिनिमैं कई प्रसिद्ध लखि करूं सुगम सुविचार ।
देशवचनिकामय लिखूं भव्य–जीवहितधार ।।५।।
–इस प्रकार मंगलपूर्वक प्रतिज्ञा करके श्री कुन्दकुन्द आचार्य कृत प्राकृत गाथा बद्ध
पाहुड ग्रन्थोंमें से कुछ की देश भाषा वचनिका लिखते हैंः–