१५६] [अष्टपाहुड
१सप्तसु नरकावासेषु दारुणभीषणानि असहनीयानि।
भुक्तानि सुचिरकालं दुःखानि निरंतरं सोढानि२।। ९।।
अर्थः––हे जीव! तुने सात नरकभूमियोंके नरक–आवास बिलोंमें दारुण अर्थात् तीव्र
तथा भयानक और असहनीय अर्थात् सहे न जावें इसप्रकारके दुःखोंको बहुत दीर्घ कालतक
निरन्तर ही भोगे और सहे।
भावार्थः––नरक की पृथ्वी सात है, उनमें बिल बहुत हैं, उनमें दस हजार वर्षोंसे
लगाकर तथा एक सागर से कगाकर तेतीस सागर तक आयु है जहाँ आयुपर्यंत अति ही तीव्र
दुःख यह जीव अनन्तकालसे सहता आया है।। ९।।
आगे तिर्यंच गति के दुःखोंको कहते हैंः––
दुःख यह जीव अनन्तकालसे सहता आया है।। ९।।
आगे तिर्यंच गति के दुःखोंको कहते हैंः––
खणणुत्तावणवालण वेयणविच्छेयणाणिरोहं च।
पत्तो सि भावरहिओ तिरियगईए चिरं कालं।। १०।।
पत्तो सि भावरहिओ तिरियगईए चिरं कालं।। १०।।
खननोत्तापनज्वालन १वेदनविच्छेदनानिरोधं च।
प्राप्तोऽसि भावरहितः तिर्यग्गतौ चिरं कालं।। १०।।
अर्थः––हे जीव! तुने तिर्यंच गति में खनन, उत्तापन, ज्वलन, वेदन, व्युच्छेदन,
निरोधन इत्यादि दुःख सम्यग्दर्शन आदि भावरहित होकर बहुत कालपर्यंत प्राप्त किये।
भावार्थः––इस जीवने सम्यग्दर्शनादि भाव किये बिना तिर्यंच गति में चिरकाल तक दुःख
पाये – पृथ्वीकाय में कुदाल आदि खोदने द्वारा दुःख पाये, जलकायमें अग्निसे तपना, ढोलना
इत्यादि द्वारा दुःख पाये, अग्निकाय में जलाना, बुझाना आदि द्वारा दुःख पाये, पवनकाय में
भारे से हलका चलना, फटना आदि द्वारा दुःख पाये, वनस्पतिकाय में फाड़ना, छेदना, राँधना
आदि द्वारा दुःख पाये, विकलत्रय में दूसरे से रुकना, अल्प आयुसे मरना इत्यादि द्वारा दुःख
पाये,
इत्यादि द्वारा दुःख पाये, अग्निकाय में जलाना, बुझाना आदि द्वारा दुःख पाये, पवनकाय में
भारे से हलका चलना, फटना आदि द्वारा दुःख पाये, वनस्पतिकाय में फाड़ना, छेदना, राँधना
आदि द्वारा दुःख पाये, विकलत्रय में दूसरे से रुकना, अल्प आयुसे मरना इत्यादि द्वारा दुःख
पाये,
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१ मुद्रित संस्कृत प्रतिमें ‘सप्तसु नरकावासे’ ऐसा पाठ है।
२ मुद्रित संस्कृत प्रतिमें ‘स्वहित’ ऐसा पाठ है। ‘सहिय’ इसकी छाया में।
३ मुद्रित संस्कृत प्रतिमें ‘वेयण’ इसकी संस्कृत ‘व्यंजन’ है।
२ मुद्रित संस्कृत प्रतिमें ‘स्वहित’ ऐसा पाठ है। ‘सहिय’ इसकी छाया में।
३ मुद्रित संस्कृत प्रतिमें ‘वेयण’ इसकी संस्कृत ‘व्यंजन’ है।
रे! खनन–उत्तापन–प्रजालन–वीजन–छेद–निरोधनां
चिरकाळ पाम्यो दुःख भावविहीन तुं तिर्यंचमां। १०।