अनन्तगुणा जानना, क्योंकि अनन्तकाल का एकत्र किया हुआ दूध अनन्तगुणा हो जाता है।।
१८।।
रुण्णाण णयणणीरं सायरसलिलादु अहिययरं।। १९।।
रुदितानां नयननीरं सागरसलिलात् अधिकतरम्।। १९।।
अर्थः–– हे मुने! तूने माताके गर्भमें रहकर जन्म लेकर मरण किया, वह तेरे मरणसे
अन्य–अन्य जन्ममें अन्य–अन्य माताके रुदनके नयनोंका नीर एकत्र करें तब समुद्रके जलसे भी
अतिशयकर अधिकगुणा हो जावे अर्थात् अनन्तगुणा हो जावे।
पुंजइ जइ को वि जए हयदि य गिरिसमधिया
रासी।। २०।।
पुञ्जयति यदि कोऽपि देवः भवति च गिरिसमाधिकः राशिः।। २०।।
अर्थः––हे मुने! इस अनन्त संसारसागरमें तूने जन्म लिये उनमें केश, नख, नाल और
अस्थि कटे, टूटे उनका यदि देव पुंज करे तो मेरू पर्वतसे भी अधिक राशि हो जाये,
अनन्तगुणा हो जावे।। २०।।
नयनो थकी जळ जे वह्यां ते उदधिजळथी अति घणां। १९।
निःसीम भवमां त्यक्त तुज नख–नाळ–अस्थि–केशने