
का उदय आवे वह [१] सर्वावधिमरण है और एकदेश बंध–उदय हो तो [२]
देशावधिमरण कहलाता है।। ३।।
पाँचवाँ
शरीर इनके आचरण के लिये समर्थ न हो वह ‘अव्यक्तबाल’ है। जो लोकके और शास्त्रके
व्यवहार को न जाने तथा बालक अवस्था हो वह ‘व्यवहारबाल’ है। वस्तुके यथार्थज्ञान रहित
‘ज्ञानबाल’ है। तत्त्वश्रद्धानरहित मिथ्यादृष्टि ‘दर्शनबाल’ है। चारित्ररहित प्राणी ‘चारित्रबाल’
है। इनका मरना सो बाल मरण है। यहाँ प्रधानरूपसे दर्शनबाल का ही ग्रहण है क्योंकि
सम्यक्दृष्टि को अन्यबालपना होते हुए भी दर्शनपंडितता के सद्भावसे पंडितमरण में ही गिनते
हैं। दर्शनबालका मरण संक्षेपमें दो प्रकारका कहा है––इच्छाप्रवृत्त और अनिच्छाप्रवृत्त। अग्निसे,
धूमसे, शस्त्रसे, विषसे, जलसे, पर्वतके किनारेपर से गिर ने से, अति शीत–उष्णकी बाधा से,
बंधनसे, क्षुधा–तृषाके रोकनेसे, जीभ उखाड़ने से और विरूद्ध आहार करने से बाल
‘अनिच्छाप्रवृत्त’ है।। ५।।
‘सम्यक्त्वपंडित’ है। सम्यग्ज्ञान सहित हो ‘ज्ञानपंडित’ है। सम्यक्चारित्र सहित हो
‘चारित्रपंडित’ है। यहाँ दर्शन–ज्ञान–चारित्र सहित पंडितका ग्रहण है, क्योंकि व्यवहार–पंडित
मिथ्यादृष्टि बालमरण में आ गया।। ६।।