भावपाहुड][१७१
मोक्षमार्गमें प्रवर्तने वाला साधु संघसे छूटा उसको ‘आसन्न’ कहते हैं। इसमें पार्श्वस्थ,
स्वच्छन्द, कुशील, संसक्त भी लेने; इसप्रकार के पंचप्रकार भ्रष्ट साधुओंका मरण
‘आसन्नमरण’ है।
सम्यग्दृष्टि श्रावक का मरण ‘बालपंडित मरण’ है।। ८।।
सशल्यमरण दो प्रकार का है––––मिथ्यादर्शन, माया, निदान ये तीन शल्य तो
‘भावशल्य’ है और पंच स्थावर तथा त्रस में असैनी ये ‘द्रव्यशल्य’ सहित हैं, इसप्रकार
‘सशल्यमरण’ है।। ९।।
जो प्रशस्तक्रियामें आलसी हो, व्रतादिकमें शक्ति को छिपावे, ध्यानादिक से दूर भागे,
इसप्रकार मरण ‘पलायमरण’ है।। १०।।
वशार्त्तमरण चार प्रकार का है–––वह आर्त्त – रौद्र ध्यानसहित मरण है, पाँच
इन्द्रियोंके विषयोंमें राग–द्वेष सहित मरण ‘इन्द्रियवशार्त्तमरण’ है। साता – असाता की वेदना
सहित मरे ‘वेदनावशार्त्तमरण’ है। क्रोध, मान, माया, लोभ, कषायके वश से मरे
‘कषायवशार्त्तमरण’ है। हास्य विनोद कषाय के वश से मरे ‘नोकषायवशार्त्तमरण’ है ।। ११।।
जो अपने व्रत क्रिया चारित्र में उपसर्ग आवे वह सहा भी न जावे और भ्रष्ट होने का
भय आवे तब अशक्त होकर अन्न–पानी का त्याग कर मरे ‘विप्राणसमरण’ है।। १२।।
शस्त्र ग्रहणका मरण हो ‘गृध्रपृष्ठमरण’ है।। १३।।
अनुक्रमसे अन्न–पानीका यथाविधि त्याग कर मरे ‘भक्तप्रत्याख्यानमरण’ है।। १४।।
संन्यास करे और अन्यसे वैयावृत्त करावे ‘इंगिनीमरण’ है।। १५।।
प्रायोपगमन संन्यास करे और किसी से वैयावृत्त न करावे, तथा अपने आप भी न करे,
प्रतिमायोग रहे ‘प्रायोपगमनमरण’ है।। १६।।
केवली मुक्ति प्राप्त हो ‘केवलीमरण’ है।। १७।।