गहिउज्झियाइं बहुसो अणंतभवसायरे
गृहीतोज्झितानि बहुशः अनन्तभवसागरे जीवः।। ३५।।
अर्थः––इस जीवने इस अनन्त अपार भवसमुद्रमें लोककाशके जितने प्रदेश हैं उन प्रति
समय समय और पर्याय के आयुप्रमाण काल और जैसा योगकषाय के परिणमनस्वरूप परिणाम
और जैसा गति जाति आदि नाम कर्मके उदयसे हुआ नाम और काल जैसा उत्सर्पिणी–
अवसर्पिणी उनमें पुद्गलके परमाणुरूप स्कन्ध, उनको बहुतबार अनन्तबार ग्रहण किये और
छोडे़।
मुत्तूणट्ठ पएसा जत्थण ढुरुढुल्लिओ जीयो।। ३६।।
मुक्त्वाऽष्टौ प्रदेशान् यत्र न भ्रमितः जीवः।। ३६।।
अर्थः–यह लोक तीनसौ तेतालीस राजू प्रमाण क्षेत्र है, उसके बीच मेरूके नीचे
गोस्तनाकार आठ प्रदेश हैं, उनको छोड़कर अन्य प्रदेश ऐसा न रहा जिसमें यह जीव नहीं
जन्मा – मरा हो।
बहुशः शरीर ग्रह्यां–तज्यां निःसीम भवसागर विषे। ३५।
त्रणशत–अधिक चाळीश–त्रण रज्जुप्रमित आ लोकमां