बना कर मध्यदेश उपजता है, वहाँ से क्षेत्रपरावर्तन का प्रारंभ किया जाता है, इसलिये उनको
पुनरुक्त भ्रमण में नहीं गिनते हैं।। ३६।। [देखो गो० जी० काण्ड गाथा ५६० पृ० २६६ मूलाचार
अ० ९ गाथा १४ पृ० ४२८]
अवसेसे य सरीरे रोया भण कित्तिया भणिया।। ३७।।
अवशेषे च शरीरे रोगाः भण कियन्तः भणिताः।। ३७।।
अर्थः––इस मनुष्य के शरीर में एक एक अंगुलमें छ्यानवे छ्यानवे रोग होते हैं, तब
कहो, अवशेष समस्त शरीर में कितने रोग कहें।। ३७।।
एवं सहसि महाजस किं वा बहुएहिं लविएहिं।। ३८।।
एवं सहसे महायशः। किं वा बहुभिः लपितैः।। ३८।।
अर्थः––हे महाशय! हे मुने! तूने पूर्वोक्त रोगोंको पूर्वभवोंमें तो परवश सहे, इसप्रकार
ही फिर सहेगा, बहुत कहने से क्या?
तो केटला रोगो, कहो, आ अखिल देह विषे, भला! ३७।
ए रोग पण सघळा सह्या तें पूर्वभवमां परवशे;