अवधि ये तीन मिथ्याज्ञान भी कहलाते हैं, इसलिये मिथ्याज्ञानका अभाव करने के लिये मनि,
श्रुत, अवधि, मनःपर्यय और केवलज्ञान स्वरूप पाँच प्रकारका सम्यज्ञान जानकर उनको भाना।
परमार्थ विचार से ज्ञान एक ही प्रकार का है। यह ज्ञानकी भावना स्वर्ग–मोक्षकी दाता है।।
६५।।
भावो कारण भूद्दो सायारणयार भूदाणं।। ६६।।
भावः कारणभूतः सागारानगारभूतानाम्।। ६६।।
अर्थः––भावरहित पढ़ने सुनने से क्या होता है? अर्थात् कुछ भी कार्यकारी नहीं है,
इसलिये श्रावकत्व तथा मुनित्व इनका कारणभूत भाव ही है।
नहीं है, इसलिये ऐसा उपदेश है कि भाव बिना पढ़ने–सुनने आदिसे क्या होता है? केवलखेद
मात्र है, इसलिये भावसहित जो करो वह सफल है। यहाँ ऐसा आशय है कि कोई जाने कि–
–पढ़ना–सुनना ही ज्ञान है तो इसप्रकार नहीं है, पढ़कर–सुनकर आपको ज्ञामस्वरूप जानकर
अनुभव करे तब भाव जाना जाता है, इसलिये बारबार भावनासे भाव लगाने पर ही सिद्धि है।।
६६।।
परिणामेण असुद्धा ण भावसवणत्तणं पत्ता।। ६७।।
सागार–अणगारत्वना कारणस्वरूपे भाव छे। ६६।
छे नग्न तो तिर्यंच–नारक सर्व जीवो द्रव्यथी;