कहते हैं भोगता नहीं है, कई कहते हैं उत्पन्न नहीं होता है, कई कहते हैं नष्ट नहीं होता है,
कई कहते हैं गमन नहीं करता है और कई कहते हैं ठहरता नहीं है–––इत्यादि क्रिया के
अभाव से पक्षपात से सर्वथा एकान्ती होते हैं। इनके संक्षेपसे चौरासी भेद हैं।
कई
यह कौन जाने? कई कहते हैं जीव अनित्य है यह कौन जाने? इत्यादि संशय–विपर्यय–
अनध्यवसायरूप होकर विवाद करते है। इनके संक्षेपसे सड़सठ भेद हैं। कई विनयवादी हैं,
उनमें से कई कहते हैं देवादिकके विनय से सिद्धि है, कई कहते हैं गुरुके विनय से सिद्धि है,
कई कहते हैं माताके विनय से सिद्धि है, कई कहते हैं कि पिता के विनय से सिद्धि है, कई
कहते हैं कि राजा के विनय से सिद्धि है, कई कहते हैं कि सेवक के विनय से सिद्धि है,
इत्यादि विवाद करते हैं। इनके संक्षेप से बत्तीस भेद हैं। इसप्रकार सर्वथा एकान्तवादियोंके
तीनसौत्रेसठ भेद संक्षेप से हैं, विस्तार करने पर बहुत हो जाते हैं, इनमें कई ईश्वरवादी हैं,
कई कालवादी हैं, कई स्वभाववादी हैं, कई विनयवादी हैं, कई आत्मवादी हैं। इनका स्वरूप
गोम्मटसारादि ग्रन्थोंसे जानना, ऐसे मिथ्यात्व के भेद हैं।। १३७।।
गुडदुद्धं पि पिता ण पण्णया णिव्विसा होंति।। १३८।।
गुडदुग्धमपि पिबंतः न पन्नगाः निर्विषाः भवंति।। १३८।।