Ashtprabhrut (Hindi). Gatha: 158-159 (Bhav Pahud).

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भावपाहुड][२६३
इन्द्रादिक से पुज्य ज्ञानी धन्य हैं।
अर्थः––जो मुनि मोह–मद–गौरव से रहित हैं और करुणाभाव सहित हैं, वे ही
चारित्ररूपी खड्गसे पापरूपी स्तंभको हनते हैं अर्थात् मूलसे काट डालते हैं।

भावार्थः––इस संसार–समुद्रसे आप तिरें और दूसरोंको तिरा देवें वह मुनि धन्य हैं।
धनादिक सामग्रीसहितको ‘धन्य’ कहते हैं, वह तो ‘कहने के धन्य’ हैं।। १५७।।

आगे फिर ऐसे मुनियोंकी महिमा करते हैंः––––
मायावेल्लि असेसा मोहमहातरुवरम्मि आरूढा।
विसयविसपुप्फफुल्लिय लुणंति मुणि णाणसत्थेहिं।। १५८।।
मायावल्लीं अशेषां मोहमहातरुवरे आरूढाम्।
विषयविषपुष्पपुष्पितां लुनंति मुनयः ज्ञानशस्त्रैः।। १५८।।

अर्थः
––माया
(कपट) रूपी बेल जो मोहरूपी वृक्ष पर चढ़ी हुई है तथा विषयरूपी विष
के फूलोंसे फूल रही है उसको मुनि ज्ञानरूपी शस्त्र से समस्ततया काट डालते हैं अर्थात्
निःशेष कर देते हैं।

भावार्थः––यह मायाकषाय गूढ़ है, इसका विस्तार भी बहुत है, मुनियों तक फैलती है,
इसलिये जो मुनि ज्ञानसे इसको काट डालते हैं वे ही सच्चे मुनि हैं, वे ही मोक्ष पाते हैं।।
१५८।।

आगे फिर उन मुनियोंके सामर्थ्य को कहते हैंः–––
मोहमयगारवेहिं य मुक्का जे करुणभावसंजुत्ता।
ते सव्वदुरियखंभं हणंति चारित्तखग्गेण।। १५९।।
मोहमदगारवैः च मुक्ताः ये करुणभावसंयुक्ताः।
ते सर्वदुरितस्तंभं घ्नंति चारित्रखड्गेन।। १५९।।
––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––
मुनि ज्ञानशस्त्रे छेदता संपूर्ण मायावेलने,
–बहु विषय–विषपुष्पे खीली, आरूढ मोहमहाद्रुमे। १५८।