Ashtprabhrut (Hindi). Gatha: 21-22 (Moksha Pahud).

< Previous Page   Next Page >


Page 284 of 394
PDF/HTML Page 308 of 418

 

background image
२८४] [अष्टपाहुड
अर्थः––जो कोई सुभट संग्राममें सब ही संग्रमाके करनेवालोंके साथ करोड़ मनुष्योंको
भी सुगमतासे जीते वह सुभट एक मनुष्यको क्या न जीते? अवश्य ही जीते।
जो जाइ जोयणसयं दियहेणेक्के ण लेवि गुरुभारं।
सो किं कोसद्धं पि हु ण सक्कए जाउ भुवणचले।। २१।।
यः याति योजनशतं दिवसेनैकेन लात्वा गुरुभारम्।
स किं कोशार्द्धमपि स्फुटं न शक्नोति यातुं भुवनतले।। २१।।

अर्थः
–– जो पुरुष बड़ा भार लेकर एक दिनमें सौ योजन चला जावे वह इस
पृथ्वीतलपर आधा कोश क्या न चला जावे? यह प्रगट–स्पष्ट जानो।

भावार्थः––जो पुरुष बड़ा भार लेकरोक दिन में सौ योजन चले उसके आधा कोश
चलना तो अत्यंत सुगम हुआ, ऐसे ही जिनमार्ग से मोक्ष पावे तो स्वर्ग पाना तो अत्यंत सुगम
है।। २१।।

आगे इसी अर्थका अन्य दृष्टांत कहते हैंः–––
जो कोडिए ण जिप्पइ सुहडो संगामएहिं सव्वेहिं।
सो किं जिप्पइ इक्किं णरेण संगामए सुहडो।। २२।।
यः कोट्या न जीयते सुभटः संग्रामकैः सर्वैः।
स किं जीयते एकेन नरेण संग्रामे सुभटः।। २२।।

भावार्थः––जो जिनमार्गमें प्रवर्ते वह कर्मका नाश करे ही, तो क्या स्वर्ग के रोकने वाले
एक पापकर्म का नाश न करें? अवश्य ही करें।। २२।।

आगे कहते हैं कि स्वर्ग तो तपसे [शुभरागरूपी तप द्वारा] सब ही प्राप्त करते हैं,
परन्तु ध्यानके योग से स्वर्ग प्राप्त करते हैं वे उस ध्यानके योगसे मोक्ष भी प्राप्त करते हैंः–––
––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––
बहु भार लई दिन एकमां जे गमन सो योजन करे,
ते व्यक्तिथी क्रोशार्ध पण नव जई शकाय शुं भूतळे? २१।

जे सुभट होय अजेय कोटि नरोथी–सैनिक सर्वथी,
ते वीर सुभट जिताय शुं संग्राममां नर एकथी? २२।