भय से वंदना व पूजा करे। गारव ऐसे कि हम बडे़ हैं, महंत पुरुष हैं, सबही का सन्मान करते
हैं, इन कार्यों से कमारी बड़ाई है, इस प्रकार गारव से वंदना व पूजना होता है। इसप्रकार
मिथ्यादृष्टि के चिन्ह कहे हैं।। ९२।।
मण्णइ मिच्छादिट्ठी ण हु मण्णइ सुद्धसम्मत्तो।। ९३।।
मानयति मिथ्याद्रष्टिः न स्फुटं मानयति सुद्ध सम्यक्ती।। ९३।।
अर्थः––स्वपरापेक्ष तो लिंग–आप कुछ लौकिक प्रयोजन मनमें धारणकर भेष ले वह
स्वापेक्ष और किसी परकी अपेक्षा से धारण करे, किसी के आग्रह तथा राजादिकके भयसे धारण
करे वह परापेक्ष है। रागी देव
सम्यक्त्व होने पर न इनको मानता है, न श्रद्धान करता है और न वंदना व पूजन ही करता है।
विवरीयं कुव्वंतो मिच्छादिट्ठी मुणेयव्वो।। ९४।।
विपरीतं कुर्वन् मिथ्याद्रष्टिः ज्ञातव्यः।। ९४।।
ए मान्य होय कुद्रष्टिने, नहि शुद्ध सम्यग्द्रष्टिने।९३।
सम्यक्त्वयुत श्रावक करे जिनदेवदेशित धर्मने;