बड़ाई नहीं है, बड़ाई तो वह है जिससे संसार का भ्रमण मिटे सो यह तो वीतराग विज्ञान
भावोंसे ही मिटेगा, इस वीतरागविज्ञान भावयुक्त पँच परमेष्ठी हैं ये ही संसारभ्रमण का दुःख
मिटाने में कारण हैं।
छूटकर मोक्ष हो ऐसा उपाय करना। वर्तमानका भी विध्न जैसा पँच परमेष्ठी के नाम, मंत्र,
ध्यान, दर्शन, स्मरण से मिटेगा वैसा अन्यके नामादिक से तो नहीं मिटेगा, क्योंकि ये
पँचपरमेष्ठी ही शांतिरूप हैं, केवल शुभ परणिामों ही के कारण हैं। अन्य इष्ट के रूप तो
रौद्ररूप हैं, इनके दर्शन स्मरण तो रागादिक तथा भयादिकके कारण हैं, इनसे तो शुभ
परिणाम होते दिखते नहीं हैं। किसी के कदाचित् कुछ धर्मानुराग के वश से शुभ परिणाम हों
तो वह उनसे हुआ नहीं कहलाता, उस प्राणी के स्वाभाविक धर्मानुराग के वश से होता है।
इसलिये अतिशयवान शुभ परिणाम का कारण तो शांतिरूप पँच परमेष्ठी ही का रूप है, अतः
इसी का आराधन करना, वद्यथा खोटी युक्ति सुनकर भ्रममें नहीं पड़ना, ऐसे जानना।