कर्मनाशि शिवसुख लियो वंदूं तिन के पांय।। १।।
वचनिका का अनुवाद लिखा जाता है–––प्रथम ही आचार्य मंगल के लिये इष्टको नमस्कार
कर ग्रन्थ करनेकी प्रतिज्ञा करते हैंः––––
वोच्छामि समणलिंगं पाहुडसत्थं समासेण।। १।।
वक्ष्यामि श्रमणलिंगं प्राभृतशास्त्रं समासेन।। १।।
अर्थः–––आचार्य कहते हैं कि मैं अरहंतों को नमस्कार करके और वैसे ही सिद्धों को
नमस्कार करके तथा जिसमें श्रमणलिंग का निरूपण है इस प्रकार पाहुडशास्त्र को कहूँगा।
भाखीश हुं संक्षेपथी मुनिलिंग प्राभृत शास्त्रने। १।