Ashtprabhrut (Hindi). Gatha: 10 (Ling Pahud).

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लिंगपाहुड][३५३
वासना मिटी नहीं तब लिंगी का रूप धारण करके भी गृहस्थ कार्य करने लगा, आप विवाह
नहीं करता है तो भी गृहस्थोंके सम्बंध कराकर विवाह कराता है तथा खेती, व्यापार जीवहिंसा
आप करता है और गृहस्थोंको कराता है, तब पापी होकर नरक जाता है। ऐसे भेष धारने से
तो गृहस्थ ही भका था, पदका पाप तो नहीं लगता, इसलिये ऐसे भेष धारण करना उचित
नहीं है यह उपदेश है।। ९।।
अर्थः––जो लिंगी ऐसे प्रवर्तता है वह नरकवास को प्राप्त होता है; जो चोरोंके और
लापर अर्थात् झूठ बोलने वालोंके युद्ध और विवाद कराता है और तीव्रकर्म जिनमें बहुत पाप
उत्पन्न हो ऐसे तएव्र कषायोंके कार्यों से तथा यंत्र अर्थात् चौपड़, शतरंज, पासा, हिंदोला
आदि से क्रिड़ा करता रहता है, वह नरक जाता है। यहाँ ‘लाउराणं’ का पाठान्तर ऐसा भी है
राउलाणं इसका अर्थ–––रावल अर्थात् राजकार्य करने वालों के युद्ध विवाद कराता है, ऐसे
जानना।
भावार्थः–– लिंग धारण करके ऐसे कार्य करे तो नरक ही पाता है इसमें संशय नहीं
है।। १०।।

आगे फिर कहते हैंः–––
चोराण लाउराण य जुद्ध विवादं च तिव्वकम्मेहिं।
जंतेण दिव्वमाणो गच्छदि लिंगी णरयवासं।। १०।।
चौराणां लापराणां च युद्धं विवादं च तीव्रकर्मभिः।
यंत्रेण दीव्यमानः गच्छति लिंगी नरकयासं।। १०।।

आगे कहते हैं कि जो लिंग धारण करके लिंगयोग्य कार्य करता हुआ दुःखी रहता है,
उन कार्योंका आदर नहीं करता, वह भी नरक में जाता हैः–––
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१ मुद्रित सटकि संस्कृत प्रति में ‘समाएण’ ऐसा पाठ है जिसकी छाया में ‘मिथ्यात्वादिनां’ इसप्रकार है।
चोरो–लबाडोने लडावे, तीव्र परिणामो करे,
चोपाट–आदिक जे रमे, लिंगी नरक गामी बने। १०।