३८][अष्टपाहुड
सवैया छन्द
मोक्ष उपाय कह्यो जिनराज जु सम्यगदर्शन ज्ञान चरित्रा।
तामधि सम्यग्दर्शन मुख्य भये निज बोध फलै सु चरित्रा।।
जे नर आगम जानि करै पहचानि यथावत मित्रा।
घाति खिपाय रु केवल पाय अघाति हने लहि मोक्ष पवित्रा ।।१।।
दोहा
नमुं देव गुरु धर्मकूं , जिन आगमकूं मानि।
जा प्रसाद पायो अमल, सम्यग्दर्शन जानि।।२।।
इति श्री कुन्दकुन्दस्वामि विरचित अष्टप्राभृत में प्रथम दर्शनप्राभृत और
उसकी जयचन्द्रजी छाबड़ा कृत देषभाषामयवचनिका का
हिन्दी भाषानुवाद समाप्त हुआ।
ॐ