Ashtprabhrut (Hindi).

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सूत्रपाहुड][४१
इनके पीछे इनकी परिपाटी में आचार्य हुए, इनके अर्थका व्युच्छेद नहीं हुआ, ऐसी
दिगम्बरों के संप्रदाय में प्ररूपणा यथार्थ है। अन्य श्वेताम्बरादिक वर्धमान स्वामीसे परम्परा
मिलाते हैं वह कल्पित है क्योंकि भद्रबाहु स्वामीके पीछे कई मुनि अवस्था से भ्रष्ट हुए, ये
अर्द्धफालक कहलाये। इनकी संप्रदाय में श्वेताम्बर हुए, इनमें ‘देवर्द्धिगणी’ नामक साधु इनकी
संप्रदाय में हुआ है, इसने सूत्र बनाये हैं सो इनसे शिथिलाचारको पुष्ट करने के लिये कल्पित
कथा तथा कल्पित आचरणका कथन किया है वह प्रमाणभूत नहीं है। पंचमकालमें जैसाभासोंके
शिथिलाचारकी अधिकता है सो युक्त है, इस काल में सच्चे मोक्षमार्गी विरलता है, इसलिये
शिथिलाचारियों के सच्चा मोक्षमार्ग कहाँसे हो–इसप्रकार जानना।

अव यहाँ कुछ द्वादशांगसूत्र तथा अगंबाह्यश्रुत का वर्णन लिखते हैं–तीर्थंकरके मुखसे
उत्पन्न हुई सर्व भाषामय दिव्यध्वनिको सुन करके चार ज्ञान, सप्तऋद्धिके धारक गणधर देवोंने
अक्षर पदमय सूत्ररचना की। सूत्र दो प्राकर के हैं–––१ अंग, अंगबाह्य। इनके अपुनरुक्त
अक्षरोंकी संख्या बीस अंक प्रमाण है। ये अंक–
१८४४६७४४०७३७०९५५१६१५ इतने अक्षर हैं। इनके पद करें तब एक मध्यपदके अक्षर सोलहसौ
चौंतीस करोड तियासी लाख सात हजार आठसौ अठयासी कहें हैं। इनका भाग देनेपर एकसौ
बारह करोड़ तियासी लाख अट्ठावन हजार पाँच इतने पावें, ये पद बारह अंगरूप सूत्रके पद
हैं ओर अविशेष बीस अंकोंमें अक्षर रहे, ये अंगबाह्य सूत्र कहलाते हैं। ये आठ करोड एक लाख
आठ हजार एकसौ पिचहत्तर अक्षर हैं, इन अक्षरोंमें चौदह प्रकीर्णकरूप सूत्र रचना है।

अब इन द्वादशांगरूप सूत्ररचनाके नाम और पद संख्या लिखते हैं–प्रथम अंग आचारांग
है। इसमें मुनीश्वरोंके आचारका निरूपण है, इसके पद अठारह हजार है। दूसरा सूत्रकृत अंग
है, इसमें ज्ञानका विनय आदिक अथवा धर्मक्रियामें स्वमत परमतकी क्रियाके विशेषका निरूपण
है, इसके पद छत्तीस हजार हैं। तीसरा स्थानअंग है इसमें पदार्थोंके एक आदि स्थानोंका
निरूपण है जैसे– जीव सामान्यरूप से एक प्रकार, विशेषरूपसे दो प्रकार , तीन प्रकार
इत्यादि ऐसे स्थान कहे हैं, इसके पद बियालीस हजार हैं। चौथा समवाय अंग है, इसमें
जीवादिक छह द्रव्योंका द्रव्य क्षेत्र कालादि द्वारा वणरन है, इसके पद एक लाख चौसठ हजार
हैं।
पाँचवाँ व्याख्याप्रज्ञप्ति अंग है, इसमें जीवके अस्ति–नास्ति आदिक साठ हजार प्रश्न
गणधरदेवों ने तीर्थंकरोंके निकट किये उनका वर्णन है। इसके पद दो लाख अट्ठाईस हजार हैं।