उवगूहण ठिदिकरणं वच्छल्ल पहावणा य ते अट्ठ।। ७।।
उपगूहनं स्थितीकरणं वात्सल्यं प्रभावना च ते अष्टौ।। ७।।
अर्थः––निःशंकित, निःकांक्षित, निर्विचिकित्सा, अमूढदृष्टि, उपगूहन, स्थितिकरण,
वात्सल्य और प्रभावना ये आठ अंग हैं।
जिसने जिनवचन में शंका न की, निर्भय हो छीके की लड़ काट कर के मंत्र सिद्ध किया। निः
कांक्षितका सीता, अनंतमती, सुतारा आदिका उदाहरण है, जिन्होंने भोगों के लिये धर्म को नहीं
छोड़ा। निर्विचिकित्साका उद्दायन राजाका उदाहरण है, जिसने मुनिका शरीर अपवित्र देखकर
भी ग्लानि नहीं की। अमूढ़दृष्टिका रेवती रानी का उदाहरण है, जिसको विद्याधर ने अनेक
महिमा दिखाई तो भी श्रद्धानसे शिथिल नहीं हुई।
छिपाया। स्थितिकरण का वारिषेण का उदाहरण है, जिसने पुष्पदंत ब्राह्मणको मुनिपद से
शिथिल हुआ जानकर दृढ़ किया। वात्सल्यका विष्णुकुमारका उदाहरण है, जिनने अकंपन आदि
मुनियोंका उपसगर निवारण किया। प्रभावना में वज्रकुमार मुनिका उदाहरण है, जिसने
विद्याधर से सहायता पाकर धर्मकी प्रभावना की। ऐसे आठ अंग प्रगट होने पर सम्यक्त्वाचरण
चारित्र होता है, जैसे शरीर में हाथ, पैर होते हैं वैसे ही सम्यक्त्व के अंग हैं। ये न हों तो
विकलांग होता है।।७।।